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आवश्यक नियुक्ति
४५३ कुंभी में कुत्तों को डालकर राजा को उसी में डाल दिया और उस कुंभी का द्वार बंद करके नीचे से आग जला दी। अग्नि के ताप के कारण कुंभीगत कुत्तों ने दत्त को नोच-नोच कर उसके शरीर के खंड-खंड कर डाले। ११५. चिलातक और सुंसुमा
क्षितिप्रतिष्ठित नगर में एक पंडितमानी ब्राह्मण शासन की निन्दा करता था। एक बार एक मुनि ने वाद में प्रतिज्ञा के अनुसार उसे पराजित कर दिया। फिर देवता द्वारा प्रेरित होने पर उसने दीक्षा स्वीकार कर ली। दीक्षित होने पर भी वह जुगुप्सा छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। उसके सभी पारिवारिक जन उपशान्त थे लेकिन उसकी पत्नी स्नेह नहीं छोड़ती थी। उसने पति बने साधु को वश में करने के लिए कार्मण आदि वशीकरण का प्रयोग किया। वह मरकर देवलोक में उत्पन्न हुआ। उसकी पत्नी भी विरक्त होकर प्रव्रजित हो गई। दोष की ओलाचना किए बिना वह मरकर देवलोक में उत्पन्न हुई। मुनि देवलोक से च्युत होकर राजगह नगर में धन नामक सार्थवाह के घर में चिलाता नामक दासी के
त्र रूप में उ
न हुआ। बालक का नाम चिलातक रखा गया। ब्राह्मण-पत्नी भी च्युत होकर उसी सार्थवाह के घर में पांच पुत्रों के बाद पुत्री रूप में उत्पन्न हुई। उसका नाम सुंसुमा रखा गया। चिलातक को सुंसुमा की देखरेख के लिए रखा गया । उसको सुंसुमा के साथ कुचेष्टा करते देख सेठ ने चिलातक को घर से निकाल दिया। वह वहां से सिंह गुफा नामक चोरपल्ली में चला गया। वहां वह अग्रप्रहारी और क्रूर बन गया। चोर-सेनापति के मरने पर चिलातक को चोर-सेनापति बना दिया गया।
___ एक बार उसने अपने साथियों से कहा- 'राजगृह नगर में धन सार्थवाह रहता है। उसकी पुत्री का नाम सुंसुमा है, वहां चलें। जो धन प्राप्त हो, वह सब तुम्हारा और सुंसुमा मेरी होगी।' चोर-सेनापति चिलातक वहां गया। उसने अवस्वापिनी विद्या से धन और उसके सभी पुत्रों को निद्राधीन कर डाला। चोर उसके घर में घुसे। धन और सुंसुमा को लेकर वे भाग गए। धन सेठ ने नगर-रक्षकों को बुलाकर कहा'मेरी पुत्री को लाकर दो। जो धन मिले, वह सब तुम बांट लेना।' पीछा होता देख चोर धन की गठरियों को फेंक कर भाग गए।
नगर-रक्षक धन की गठरियों को लेकर लौट आए। चिलातक सुंसुमा को लेकर भागता रहा। धन अपने पुत्रों के साथ चिलातक का पीछा करने लगा। चिलातक सुंसुमा के भार से दब गया। जब वह उसे उठाने में समर्थ नहीं रहा और पीछा करने वालों को निकट आते देखा तो उसने सुसुमा का सिर काट दिया। वह धड़ को वहीं जमीन पर छोड़कर सिर लेकर भाग गया। यह देखकर पीछा करने वाले लौटने लगे। वे सभी क्षुधा से आकुल-व्याकुल हो रहे थे। तब धन ने पुत्रों से कहा- 'तुम मुझे मारकर खा लो और नगर में सकुशल पहुंच जाओ।' वे नहीं चाहते थे कि वैसा हो। तब बड़ा पुत्र बोला- 'मुझे खा लो।' इस प्रकार सभी पुत्रों ने अपने आपको प्रस्तुत किया। तब पिता ने उनसे कहा- 'एक-दूसरे को क्यों मारें ? चिलातक के द्वारा मारी गई सुसुमा को ही खा लें।' इस प्रकार पुत्री का मांस खाकर वे नगर में गए।
१. आवनि. ५६५/६, आवचू. १ पृ. ४९५, ४९६, हाटी. पृ. २४६, २४७, मटी. प. ४७८, ४७९ ।
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