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परि. ३ : कथाएं
सा सा सा' भगवान् ने कहा- 'वह तुम्हारी भगिनी ही थी ।' उसे वैराग्य उत्पन्न हुआ और वह प्रव्रजित हो गया। भगवान् ने ‘जा सा सा सा' का स्पष्टीकरण कर दिया।' यह बात सुनकर परिषद् भी संवेग को प्राप्त हो गई।
रानी मृगावती भगवान् के चरणों में उपस्थित होकर बोली- 'भंते! मैं महाराजा प्रद्योत से पूछकर आपके पास प्रव्रजित होना चाहती हूं।' महारानी ने उस समवसरण में उपस्थित प्रद्योत से पूछा । देव और मनुष्यों से युक्त उस महान् परिषद् में प्रद्योत किंकर्त्तव्यविमूढ हो गया । वह नकारने में असमर्थ रहा। उसने मृगावती को प्रव्रज्या की अनुमति दे दी। तब मृगावती अपने पुत्र उदयनकुमार को धरोहर की भांति महाराज प्रद्योत को सौंपकर प्रव्रजित हो गई। प्रद्योत की अंगारवती आदि प्रमुख आठ रानियां भी दीक्षित हुईं। मुनि बने उस ब्राह्मणपुत्र ने पांच सौ चोरों को संबोध दिया और सबको प्रव्रजित कर दिया ।
९. ( अ ) अंधा और पंगु
एक महानगर में आग लग गयी। वहां दो अनाथ थे, जिनमें एक अंधा था और दूसरा पंगु । पंगु पलायनमार्ग को जानता हुआ भी चलने की असमर्थता के कारण अग्नि से जल गया। अंधा चलने का सामर्थ्य रखने पर भी पलायन मार्ग को नहीं देखने के कारण अग्नि से भरे एक गड्ढे में गिरकर जल गया। (ब) अंधा और पंगु
राजा के भय से नागरिक लोग एक अरण्य में इक्कट्ठे हो गए। वहां से भी डाकू के भय से वे लोग वाहनों को छोड़कर भाग गए। वहां दो अनाथ थे, जिनमें एक अंधा था तथा दूसरा पंगु । अरण्य में दावाग्नि लग गयी। अंधा व्यक्ति अग्नि वाले मार्ग से जाने लगा तब पंगु ने कहा- 'भाई ! तुम उधर मत जाओ क्योंकि उधर अग्नि है ।' अंधे ने पूछा- 'फिर मैं किधर जाऊं ?' पंगु ने कहा- 'मैं आगे अधिक दूर का मार्ग देखने में समर्थ नहीं हूं क्योंकि मैं पंगु हूं अतः चल नहीं सकता। तुम मुझे अपने कंधे पर बिठा लो जिससे सांप, कांटे, अग्नि आदि मार्ग-दोषों से रक्षा करता हुआ तुम्हें सुखपूर्वक नगर में प्रवेश करवा दूंगा।' अंधे ने पंगु की बात स्वीकार कर ली और वे दोनों सकुशल अपने नगर पहुंच गए।
१०. कुब्जा
प्रतिष्ठान नगर में शातवाहन' नामक राजा राज्य करता था। वह प्रतिवर्ष भृगुकच्छ नगर में नरवाहन राजा पर चढ़ाई करता और वर्षाऋतु प्रारम्भ होने पर अपने नगर में लौट आता था। एक बार भृगुकच्छ जाते हुए राजा ने आस्थानमंडप में थूक दिया। उसके पास छत्रधारिणी एक कुब्जा स्त्री थी । थूकने के कारण उसने अब यह भूमि अपरिभोग्य हो गई है। राजा कहीं अन्यत्र जाना चाहता है। राज्य का यानशालिक उस कुब्जा से परिचित था । उसने राजा का अभिप्राय यानशालिक को बताया। उस यानशालिक ने यान
१. आवचू. १ पृ. ८७-९१, हाटी. १ पृ. ४२-४५, मटी. प. १०१-१०४ ।
२. आवनि. ९५, आवचू. १ पृ. ९६, हाटी. १ पृ. ४७, मटी. प. १०९ ।
३. आवनि. ९६, हाटी. १ पृ. ४८, मटी. प. १०९, ११० ।
४. हाटी और मटी. में शालिवाहन राजा का उल्लेख मिलता है।
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