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________________ गाथाओं का समीकरण आवश्यक निर्युक्ति पर विपुल व्याख्या - साहित्य प्राप्त है। भाष्य, चूर्णि एवं टीकाएं - तीनों में निर्युक्ति गाथा की संख्याओं में काफी अंतर है। संपादन में भी हमने गाथाओं के बारे में पर्याप्त विमर्श किया है। कितनी गाथाएं बाद में प्रक्षिप्त हुईं तथा कितनी गाथाएं भाष्य की हैं, इस बारे में पादटिप्पण में विमर्श प्रस्तुत किया है अतः संपादित गाथा संख्याएं भी टीका, चूर्णि एवं भाष्य में प्रकाशित गाथा संख्याओं की संवादी नहीं हैं। पाठकों की सुविधा के लिए हम यहां चार्ट प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे किसी भी व्याख्या - साहित्य में गाथा को खोजने में सुविधा रहेगी। जिनदासकृत चूर्णि में नियुक्ति की गाथा का केवल संकेत मात्र तथा गाथा संख्या भी सम्यक् रूप से नहीं दी गयी हैं इसलिए हमने चार्ट में चूर्णि को सम्मिलित नहीं किया है। — आवश्यक एवं उसकी निर्यक्ति पर जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने विस्तृत व्याख्या लिखी है, जो विशेषावश्यक भाष्य के नाम से प्रसिद्ध है । विशेषावश्यक भाष्य पर तीन टीकाएं उपलब्ध हैं१. स्वोपज्ञ ( जिन भद्रगणिक्षमाश्रमण कृत) । २. कोट्याचार्य कृत । ३. आचार्य मलधारी हेमचन्द्र कृत । हमने इन तीनों को स्वो, कोटी एवं महेटी के संकेत से निर्दिष्ट किया है। इन तीनों में नियुक्ति के साथ-साथ भाष्य की संख्या का निर्देश भी कर दिया है। हमने डॉ. नथमल टांटिया वाली कोट्याचार्य टीका को काम में लिया है। वह भाष्य २०८० गाथा तक ही प्रकाशित है तथा नियुक्ति गाथा भी ४४४ / २०७९ तक ही है। आवश्यक निर्युक्ति पर मुख्य दो टीकाएं उपलब्ध हैं - हरिभद्रकृत एवं मलयगिरिकृत। इनको हमने क्रमशः हाटी एवं मटी के संकेत से उल्लिखित किया है। आवश्यक निर्युक्ति पर दीपिका भी लिखी गई है, उसे हमने दीपिका नाम से निर्दिष्ट किया है। मटी की प्रकाशित पुस्तक में भाष्य के साथ निर्युक्ति के अलग क्रमांक नहीं दिए हुए हैं। टीकाकार ने कहीं नियुक्तिगाथासमासार्थः, निर्युक्तिगाथार्थः, निर्युक्तिकृदाह आदि का संकेत किया है। कहीं कहीं 'एनां भाष्यकारो विस्तरतः स्वयमेव व्याख्यानयति' आदि का उल्लेख भी है । उसी आधार पर चार्ट में हमने भाष्य संख्या के साथ या x का संकेत किया है। टीकाकार द्वारा निर्युक्तिगाथा का संकेत न होने पर भी यदि गाथा है तो भाष्य क्रमांक के आगे ० का संकेत कर दिया है। संपादित १. २. ३. ४. ५. Jain Education International हाटी. १ ३ ४ ५ मटी. १ २ ३ ४ 5 दीपिका १ २ ३ स्वोपज्ञ १/७९ २/१७७ ३/१७८ ४/३३१ ५/३३४ For Private & Personal Use Only महेटी. ८/७९ // १७८ // १७९ //३३३ // ३३६ कोटी. १/७९ २/१७७ ३/१७८ ४/३३२ ५/३३५ www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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