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आवश्यक निर्युक्ति
६७७. जो तीन करण तीन योग से पाप का व्युत्सर्ग करता है, वह सावद्ययोगविरत होता है। सामायिक के आरम्भ समय का यह अनुगम समाप्त हुआ ।
६७८. विद्या और चरणनय अर्थात् ज्ञाननय और क्रियानय में शेष नयों का समवतार कर लेना चाहिए। यह सुभाषित अर्थ वाली सामायिक नियुक्ति समाप्त हुई ।
६७९. अर्थ को भलीभांति जान लेने पर उपादेय के ग्रहण और हेय के अग्रहण में प्रयत्न करना चाहिए, यह जो उपदेश है, वह नय है ।
६८०. सभी नयों की बहुविध वक्तव्यता को सुनकर चारित्र तथा क्षमा आदि गुणों में स्थित साधु सर्वनय सम्मत होता है।
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