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________________ आवश्यक नियुक्ति १. ज्ञान पांच हैं - आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान और केवलज्ञान । २. आभिनिबोधिक ज्ञान के संक्षेप में चार भेद हैं - अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा । ३. अर्थ - शब्द, रूप आदि का प्राथमिक अवग्रहण करना अवग्रह है, वस्तु-धर्म का पर्यालोचन करना 'ईहा' है, ईहित वस्तु का व्यवसाय अर्थात् निर्णय करना अवाय तथा उस ज्ञान का अवधारण करना धारणा है। १५९ ४. अवग्रह का कालमान एक समय, ईहा और अवाय का आधा मुहूर्त्त' और धारणा का कालमान संख्यात तथा असंख्यात काल है । ५. श्रोत्रेन्द्रिय स्पृष्ट शब्दों को सुनती है । चक्षु इन्द्रिय अस्पृष्ट रूप को देखती है। गंध, रस और स्पर्श का संवेदन स्पृष्ट अवस्था में होता है । ६. भाषा की समश्रेणी में स्थित श्रोता मिश्र शब्द को सुनता है और विषम श्रेणी में स्थित श्रोता वक्ता द्वारा उत्सृष्ट शब्द को नियमतः पराघात - भाषा द्रव्यों से वासित अथवा प्रकंपित शब्दों को सुनता है । ७. वाग्द्रव्य का ग्रहण काययोग से और निस्सरण वाग्योग से होता है। ग्रहण और निस्सरण एकान्तर होता है। इसका तात्पर्य यह है कि वह प्रतिसमय ग्रहण करता है और प्रतिसमय उन्हें छोड़ता है। ८. औदारिक, वैक्रिय और आहारक- इन तीनों शरीरों में जीव के जीवप्रदेश होते हैं। उन आत्मप्रदेशों से वह शब्द द्रव्यों को ग्रहण करता है और तब वह भाषक भाषा को बोलता है । ९. औदारिक, वैक्रिय तथा आहारक शरीरधारी जीव भाषा-द्रव्यों का ग्रहण तथा विसर्जन करता है । भाषा के चार प्रकार हैं- सत्य, मृषा, सत्यामृषा (मिश्र) तथा असत्यामृषा (व्यवहार) । १०. भाषा द्रव्यों से कितने समयों में लोक निरंतर व्याप्त रहता है ? लोक के कितने भाग में भाषा का कितना भाग व्याप्त होता है ? ११. चार समय में भाषा- द्रव्य पूरे लोक में व्याप्त हो जाते हैं। लोक का अंतिम छोर भाषा द्रव्यों की व्याप्ति १. नंदी में ईहा और अवाय का समय अन्तर्मुहूर्त्त मिलता है। (अंतोमुहुत्तिया ईहा, अंतोमुहुत्तिए अवाए, नंदी ५० ) विस्तार हेतु देखें श्रीभिक्षु आगम विषयकोश पृ. ११० - १४ | २. वक्ता द्वारा मुक्त भाषा द्रव्यों की गति अनुश्रेणी में होती है। सूक्ष्म होने के कारण उनके प्रतिघात का कोई निमित्त नहीं बनता। भाषा के द्रव्य प्रथम समय में समश्रेणी में ही जाते हैं। द्वितीय समय में उनके द्वारा वासित द्रव्य विषमश्रेणी में जाते हैं अर्थात् एक समय के पश्चात् वे मूल रूप में अवस्थित नहीं रहते। इन कारणों से विषम श्रेणी में स्थित श्रोता वक्ता द्वारा मुक्त शब्दों को नहीं सुनता। वह केवल मुक्त शब्द से वासित शब्दों को ही सुनता है। (विभामहे गाथा ३५४) । ३. भाषा द्रव्य का ग्रहण एक समय में होता है। उसका निसर्ग भी एक समय में होता है। इस प्रकार भाषा द्रव्य के ग्रहण और निसर्ग का जघन्य काल दो समय है। भाषा द्रव्य के ग्रहण और निसर्ग का उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त्त है। इनमें यह भेद वक्ता के प्रयत्न भेद से होता है। (विभामहे ३७१, ३७२, विस्तार हेतु देखें आवचू १ पृ. १५) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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