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________________ १४२ ३. णंता उ (चू)। ४. वि ( प, महे) । ५९६. ५९७. Jain Education International ५९८. ५९९. ६००. ६०१. ६०२. ६०३. ६०४. ओगाहणाय' सिद्धा, भवत्तिभागेण होंति परिहीणा । संवाणमणित्थंत्थं, जरा-मरणविप्पमुक्काणं ॥ जत्थ य एगो सिद्धो, तत्थ अनंता भवक्खयविमुक्का । अन्नोन्नसमोगाढा, 'पुट्ठा सव्वे य' लोगंते " ॥ १. 'णाइ (हा, दी ) । २. प २६७/९, औ १९५/८, यह गाथा मुद्रित हा, दी, म में निगा के क्रम में है। महे में यह अनुपलब्ध है। मुद्रित स्वो में यह भागा (३८१४) के क्रम में है। चूर्णि में इस गाथा का संकेत मिलता है। यह गाथा निगा की होनी चाहिए क्योंकि भाष्यकार ने इस गाथा की विस्तृत व्याख्या की है। गा. ५९५ के बाद विषयवस्तु की दृष्टि से इस गाथा का संबंध बैठता है। फुसति अणंते सिद्धे, सव्वपदेसेहि नियमसो वि असंखेज्जगुणा, 'देसपदेसेहि जे असरीरा जीवघणा, उवउत्ता दंसणे य सागारमणागारं लक्खणमेयं' तु केवलनाणुवउत्ता, पासंति सव्वतो खलु नाणम्मि दंसणम्मि य, एत्तो" एगतरम्मिर उवउत्ता । सव्वस्स केवलिस्सा, जुगवं दो नत्थि उवओगा ॥ " न वि अत्थि ४ माणुसाणं, तं सोक्खं नेव१५ सव्वदेवाणं । जं सिद्धाणं सोक्खं, अव्वाबाधं उवगताणं ॥ 'सुरगणसुहं समत्तं १७, सव्वद्धा पिंडितं अनंतगुणं । न य" पावति मुत्तिसुहं 'ऽणताहि वि वग्गवग्गूर्हि १९ ॥ सिद्धस्स सुहो रासी, सव्वद्धा 'पिंडितो जइ हवेज्जा २० । सोऽणंतवग्ग भइतो, सव्वागासे न माएजा २२ ॥ ५. पुट्ठो सव्वेहिं लोगंते ( लापा, बपा), औ १९५/९, प २६७ / १०, स्वो ६८० / ३८२८ । ६. सव्वतो (म), मसा (औ) । ७. जे पुट्ठा सव्वफासेहिं (स्वो ६८१/३८२९), औ १९५/१०, प २६७/११ । ८. मेत्तं (स्वो ६८२ / ३८३५) । ९. ५९९-६०१ इन तीन गाथाओं के लिए महेटी में मात्र 'असरीरं इत्यादिनिर्युक्तिगाथात्रयं सुगमम्' का उल्लेख है। औ १९५/११, प २६७ / १२ / सिद्धो । पुट्ठा" ॥ नाणे य । सिद्धाणं ॥ जाणंती सव्वभावगुणभावे केवलदिट्ठीहिऽणंताहिं" ॥ For Private & Personal Use Only आवश्यक नियुक्ति १०. ६००, ६०१ इन दोनों गाथाओं का चूर्णि में संकेत एवं व्याख्या नहीं है, स्वो ६८३/३८३६ औ १९५ / १२, प २६७ / १३ । ११. नत्थित्थि (ब) | १२. एक्कतरयम्मि (स्वो ६८४/३८३७) । १३. औपपातिक और पण्णवणा सूत्र में इस क्रम में यह गाथा अनुपलब्ध है। १४. न वि य (स औ, प) । १५. णइव (स्वो ६८५/३८४७) । १६. औ १९५ / १३, प २६७ / १४ । १७. जं देवाणं सोक्खं ( औ) । १८. वि (ब, प) । १९. तेहि वि वग्गवग्गेहिं (स्वो ६८६ / ३८४८), औ १९५/१४, प २६७ / १५ । २०. पेण्डितो जति हवेज्ज (स्वो ६८७/३८४९ ) । २१. सहिओ (स) । २२. ६०२ - ६०४ इन तीन गाथाओं का चूर्णि में गाथा- संकेत नहीं है किन्तु संक्षिप्त व्याख्या है, औ १९५/१५, प २६७ / १६ । www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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