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आवश्यक निर्युक्ति
५३४.
५३५.
५३६.
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५३६/१.
५३६/२.
५३७.
५३८.
५३९.
माणुस - खेत्त- जाती, कुल-रूवारोग्ग- आउगं' बुद्धी । सवणोगहर सद्धासंजमो य लोगम्मि
दुलभाई ॥
१. माउयं (ब, हा, दी), माउगं (स्वो) ।
२. समणोग्गह (स्वो, स), समणुग्गह (ब, रा) ।
३. स्वो ६१९ / ३२४६, उनि १६०, इस गाथा के बाद सभी हस्तप्रतियों में निम्न अन्यकर्तृकी गाथा मिलती है। हाटी में भी इसके लिए 'भिन्नकर्तृकी किलेयं' का उल्लेख है। दीपिका में अन्यकर्तृकी न पौनरुक्त्यं का उल्लेख है
५. सिमिण (स्वो) ।
६. स्वो ६१२ / ३२४७, उनि १६१ ।
चोल्लग' पासग धण्णे, जूए स्यणे य सुमिण चम्म- जुगे परमाणू, दस दिट्ठता
जुगछिड्डुं " ।
पुव्वंते होज्ज जुगं, अवरंते तस्स होज्ज जुगछिड्डुम्मि पवेसो, इय संसइओ जह समिला पब्भट्ठा, सागरसलिले पविसेज्जा जुगछिड, कह वि भ्रमंती सा चंडवायवीचीपणोल्लिता अवि लभेज्ज न य माणुसार भट्ठो, जीवो पडिमाणुसं लभति ॥ इय दुल्लभलंभं माणुसत्तणं पाविऊण जो जीवो । न कुणति पारत्तहियं, सो सोयति संकमणकाले १४ ॥ जह वारिमज्झछूढोव्व, गयवरो मच्छओव्व गलगहितो । 'वग्गुरपडितो व १५ मओ, 'संवट्ट इओ १६ 'जह व १७ पक्खी ॥ सो सोयति मच्चु - जरासमुच्छुओ" तुरियनिद्दपक्खित्तो । तायारविंदंतो, कम्मभरपणोल्लितो १९
जीवो ॥
इंदियलद्धी निव्वत्तणा य पज्जत्ति निरुवहय खेमं । धायारोग्गं सद्धा, संजमो य लोगम्मि दुलभाई ॥
स्वो में चोल्लग (३२४७) गाथा के बाद यह गाथा भाष्यगाथा (३२४८) के क्रम में है। महे में यह गाथा नहीं है। महे में माणुस्स (५३४) से अब्भुट्ठाणे (५४८) तक की पन्द्रह गाथाएं अनुपलब्ध हैं। टीकाकार ने मात्र इतना उल्लेख किया है कि 'माणुस्सइत्यादिका अब्भुट्ठाणे इति गाथा एताः पाठसिद्धा एव क्वचिद् वैषम्ये मूलावश्यकटीकातो बोधव्या: ' इस उल्लेख से स्पष्ट है कि टीकाकार के सामने ये गाथाएं थीं लेकिन उन्होंने इनकी व्याख्या नहीं की। ४. चुल्लको देशयुक्त्या भोजनम् (दी) ।
चक्के य।
मणुयलंभे ॥
समिला उ ।
मणुयलंभो' ॥
अणोरपारम्मि ।
भमंतम्मि ॥
७. छिद्दम्मि (म, स, स्वो ६१३ / ३२५३) ।
८. स तथा रा प्रति में ५३६ और ५३६ / १ इन दोनों गाथाओं में क्रमव्यत्यय है । जध समिला... (५३६ / १ ) तथा सा चंडवाय.... (५३६/२) गाथा स्वो में भागा के क्रम में है लेकिन हस्तप्रतियों और हा, म, दी टीका में ये निगा के क्रम में हैं। वस्तुतः ये दोनों गाथाए पुव्वंते (५३६) की व्याख्या रूप प्रतीत होती हैं। चूर्णि में भी केवल पुव्वं (५३६) गाथा का संकेत एवं व्याख्या है।
९. जुग्गछिड्डुं (हा), जुगच्छिदं (स्वो) । १०. किध (स्वो ३२५२ ) ।
११. युग (हा, दी।
१२. माणुसातो (स्वो ३२५४) ।
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१३. स्वो में यह भागा के क्रम में है, देखें टिप्पण गाथा ५३६ का । १४. स्वो ६१४/३२५५ ।
१५. 'पडिउव्व (हा, दी, रा) ।
१६. संवट्टमिओ (ब, ला), संवट्टति तो (स्वो ६१५/३२५६) । १७. जहा (म) ।
१८. 'समत्थतो (स्वो), 'समोच्छुओ ( अ, हा, रा ) । १९. 'भरसमोत्थतो (स्वो ६१६ / ३२५७) ।
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