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________________ आवश्यक नियुक्ति ११७ ४८७/१३. विच्छुय' सप्पे मूसग, मिगी' वराही य कागि-पोयाई। एयाहिं विजाहिं, सो उ परिव्वायओ कुसलो ॥ ४८७/१४. मोरी नउलि बिराली, वग्घी सीही य उलुगि ओवाई। एयाओ विजाओ, गिण्ह परिव्वायमहणीओ ॥ ४८७/१५. वादे पराजिओ सो, निव्विसओ कारितो नरिंदेणं। घोसावियं च नगरे, जयति जिणो वद्धमाणो त्ति । ४८७/१६. पंचसता चुलसीता, तइया सिद्धिं गतस्स वीरस्स। ‘तो अब्बद्धियदिट्ठी'', दसपुरनगरे समुप्पण्णा ॥ १. विच्छू (म), विच्चुय (स्वो)। २. मई (स्वो)। ३. स्वो २९३५, उनि १७२/८, निभा ५६०३। ४. मोरिय (म)। ५. उलूगि (हा)। ६. 'मधणीओ (स्वो २९३६), उनि १७२/९, निभा ५६०४, इस गाथा के बाद सभी हस्तप्रतियों में सिरिगुत्तेण......(हाटीमूभा १३९, स्वो २९७१, महे २४८८) मूलभाष्य की गाथा मिलती है। इसके बाद निम्न १० गाथाएं अन्यकर्तृको उल्लेख के साथ प्रायः सभी हस्तप्रतियों में मिलती हैं। इन गाथाओं को दीपिका में भी क्षेपकगाथा माना है किन्तु स्वो एवं महे में पहली, सातवीं एवं नवीं गाथा के अतिरिक्त सभी गाथाएं भाष्यगाथा के क्रम में हैं। मटी में कुछ गाथाएं टीका की व्याख्या में उद्धृत गाथा के रूप में हैं। हाटी में इन गाथाओं का उल्लेख नहीं है। नवदव्वगुणा सत्तरस कम्मसत्ताइयाइ दावणया। सव्वे वि चउहि गुणिया, चोयालसयं तु पुच्छाणं ॥१॥ भूजल-जलणाऽणिल-णह-काल-दिसाऽऽया मणो यदव्वाई। भण्णंति नवेताई, सत्तरसगुणा इमे अण्णे ॥२॥ रूव-रस-गंध-फासा, संखा परिमाणमह पुहत्तं च । संजोग-विभाग पराऽपरत्त बुद्धी सुहं दुक्खं ॥३॥ इच्छादोसपयत्ता, एत्तो कम्मं तयं च पंचविहं । उक्खेवण निक्खेवण पसारणाऽकुंचणं गमणं ॥४॥ सत्ता सामण्णं पि य, सामण्णविसेसया विसेसो या समवाओ य पयत्था, सव्वे वि य होंति छत्तीसं॥५॥ पगतीय अगारेणं, नोगारोभयनिसेहओ सव्वे। गुणिता चोयालसतं, पुच्छाणं पुच्छितो देवो ॥६॥ इक्किक्को चउगुणिओ, चोयालसयं हवेज पुच्छाणं। सव्वेसु जाइएसुं, पुणरवि दो चेव रासीओ७॥ पढवि त्ति देइ लेटुं, देसोऽवि समाणजातिलिंगो त्ति। पढवि त्ति नो य पुढवी, देहि त्ति य देइ तोयाई॥८॥ जीवाऽजीवं नोजीवमेव तत्तो य नो अजीवं तु । पुढवाईसु वि एवं, चउरो चउरो य नायव्वा ॥९॥ जीवमजीवं दाउं, नोजीवं जाइओ पुणरजीवं। देइ चरिमम्मि जीवं, न तु नोजीवं स जीवदलं ॥१०॥ ७. स्वो २९८८, निभा ५६०६, ४८७/१५-२३ तक की नौ गाथाएं हा, म और दी में मूलभाष्य के क्रमांक में हैं। दोनों टीकाकारों ने भी इनके लिए मूलभाष्यकार का उल्लेख किया है। स्वो में ये गाथाएं भागा के क्रम में हैं। वस्तुतः ये मूलभाष्य की ही गाथाएं हैं। मलधारी हेमचन्द्र ने इन गाथाओं के लिए नियुक्ति गाथा का संकेत नहीं दिया है लेकिन इन गाथाओं के बाद वाली गाथाओं के आगे 'अथ भाष्यम् या अत्र भाष्यकार:' का उल्लेख किया है। यह उल्लेख स्पष्ट करता है कि इससे पूर्व की गाथा को टीकाकार ने नियुक्तिगाथा के रूप में स्वीकृत किया है। (देखें टिप्पण गा. ४८७/१ का) ८. अबद्धियाण दिट्ठी (हा), अबद्धिगाण दिट्ठी (म)। ९. स्वो २९९१, निभा ५६१९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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