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________________ आवश्यक निर्यक्ति ३७१. ३७२. ३७३. आभट्ठो य जिणेणं, जाइ-जरा-मरणविप्पमुक्केणं। नामेण य गोत्तेण य, सव्वण्णू-सव्वदरिसीणं'। किं मन्नि अत्थि जीवो, उदाहु नत्थि त्ति संसओ तुज्झ। वेयपयाण य अत्थं, न जाणसी तेसिमो अत्थो । छिण्णम्मि संसयम्मी', जिणेण जर-मरण-विप्पमुक्केणं। सो समणो पव्वइओ, पंचहि सह खंडियसएहिं । तं पव्वइयं सोउं, बितिओ आगच्छती अमरिसेणं। वच्चामि णमाणेमी', पराजिणित्ता ण' तं समणं ॥ आभट्ठो य जिणेणं, जाइ-जरा-मरणविप्पमुक्केणं । नामेण य गोत्तेण य, सव्वण्णू-सव्वदरिसीणं ॥ किं मन्नि अत्थि कम्मं, उदाहु णत्थि त्ति संसओ तुज्झ। वेयपयाण च अत्थं, ण जाणसी१ तेसिमो अत्थो२॥ ३७४. ३७५. ३७६. १. दरिसिणा (म), स्वो ४४२/२०००, इस गाथा के बाद प्रायः सभी हस्तप्रतियों में दो अन्यकर्तृकी गाथाएं मिलती हैं। किन्तु अ, ब, स और ला प्रति में 'गाथाद्वयं ऽन्याऽव्या' का उल्लेख है। मटी में ये भागा के क्रम में निर्दिष्ट हैं हे इंदभूतिगोतम!, सागतमुत्ते जिणेण चिंतेई। नाम पि मे बियाणइ, अहवा को मं न याणेइ ॥१॥ ई वा हियगय मे, संसय मन्निज्ज अहव छिंदेज्जा। ता हुज विम्हओ मे, इय चिंतेतो पुणो भणिओ ॥२॥ दोनों भाष्यों में ये गाथाएं भागा के क्रम में हैं (स्वो २००१, २००२, को २०२१, २०२२) । दी में ये गाथाएं गणधर से सम्बन्धित गाथाओं के बाद हैं (दी प १२१)। हाटी में 'इन गाथाओं का उल्लेख नहीं है। २. स्वो ४४३/२००३। ३. “यम्मि य (म)। ४. स्वो ४४४/२०५९। ५. बीओ (म, रा)। ६. णमिति वाक्यालंकारे आनयामि (हाटी, दी, मटी)। ७. णमिति वाक्यालंकारे (मटी), इस गाथा के बाद प्रायः सभी हस्तप्रतियों में 'गाथाद्वयं ऽन्याऽव्या' उल्लेख के साथ दो अन्यकर्तृकी गाथाएं मिलती हैं। दोनों भाष्य तथा मटी में ये भागा के क्रम में हैं। दी में ये गाथाएं गणधरवाद से सम्बन्धित गाथाओं के बाद हैं (दी प १२१)। हाटी में ये गाथाएं नहीं हैं। छलितो छलाइणा सो, मन्ने मा इंदजालिओ वावि। को जाणति कह वत्तं, इत्ताहे वट्टमाणी से॥१॥ सो पक्खंतरमेगं, पि जाति जइ मे ततो मि तस्सेव। सीसत्तं होज गतो, वोत्तुं पत्तो जिणसगासं ॥२॥ (मटीभा १२७, १२८, स्वो २०६२, २०६३) ८. स्वो ४४५/२०६१। ९. गा. ३७५-४१३ तक की गाथाएं गणधरों से सम्बन्धित होने के कारण कुछ अंतर के साथ पुनरावृत्त हुई हैं अत: प्रायः सभी हस्तप्रतियों में कहीं गाथा का एक चरण कहीं दो चरण तथा कहीं-कहीं गाथा का संकेत मात्र है। इस गाथा के बाद प्रायः सभी हस्तप्रतियों में 'गाथाद्वयं ऽन्याऽव्या' उल्लेख के साथ निम्न दो अन्यकर्तृकी गाथाएं हैं। मटी में ये भागा (१२९, १३०) के क्रम में हैं हे अग्गिभूइगोयम! सागयमुत्ते जिणेण चिंतेई। नाम पि मे वियाणइ, अहवा को मं न याणेइ ॥१॥ जइ वा हिययगयं मे, संसय मन्निज अहव छिंदेज्जा। ता हुज्ज विम्हओ मे, इय चिंतेंतो पुणो भणितो ॥२॥ १०. स्वो ४४६/२०६४। ११. याणसी (म)। १२. स्वो ४४७/२०६५। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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