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________________ ८६ आवश्यक नियुक्ति ३३०/१. आलभियाय हरि विजू, जिणस्स भत्तीइ वंदिउं' एति। भगवं पियपुच्छा', जितउवसग्गा 'थेवसेसं च ॥ ३३०/२. हरिसह सेयवियाए, 'सावत्थी खंदपडिम" सक्को य। ओयरिउं पडिमाए, लोगो आउट्टिओ वंदे ॥ ३३१. कोसंबि' चंद-सूरोतरणं- वाणारसीयसक्को उ। रायगिहे ईसाणो, मिहिला र जणओ य धरणो य२ ॥ ३३२. 'वेसालि भूयणंदो'१३, चमरुप्पातो य सुंसुमारपुरे । भोगपुर ५ सिंदिकंडग१६, माहिंदो खत्तिओ कुणति ॥ ३३३. 'वारण सणंकुमारे ८, ‘णंदिग्गामे य१९ 'पिउसहा वंदे२० । मिंढियगामे२९ गोवो, वित्तासणगं२२ च देविंदो२२ ।। ३३४. 'कोसंबीइ सयाणिय", अभिग्गहो पोसबहुलपाडिवए२५ । चाउम्मासि मिगावति, विजय सुगुत्तो स ‘णंदा य२० ॥ ३३५. तच्चावादी चंपा, दधिवाहण वसुमती बितियनामा२८ । धणवह२९ मूलालोयण, संपुल२० दाणेर य पव्वज्जा॥ १. वंदओ (अ, रा, हा)। १३. भुयाणंदो (ब, स), वेसालिवास भूयाणंदे (स्वो, को, म)। २. "पुच्छामो (रा)। १४. सूसुमा (म), सुस्सुमा" (स्वो)। ३. थेवमव" (हा, म, दी), ३३०/१, २ कोष्ठकवर्ती दोनों गाथाएं हा, म, दी १५. 'पुरि (हा, दी, स्वो)। में निगा के क्रम में व्याख्यात हैं। ३३०/१ गाथा को (१९६७) में भागा के १६. सिंदकंदग (हा, दी), सिंदुकंडग (रा), "कंदय (को)। क्रम में निर्दिष्ट है तथा ३३०/२ गाथा को में निगा (३९८/१९६८) १७. स्वो ४००/१९५२।। के क्रम में स्वीकृत है। चूर्णि तथा स्वो में इन दोनों गाथाओं के स्थान १८. सणंकुमारमोयण (को)। पर ३३० वाली गाथा मिलती है। यही गाथा नियुक्ति की संगत प्रतीत १९. णंदिगामे (हा, दी), णंदियगामे (म)। होती है क्योंकि इससे आगे की दो गाथाएं व्याख्यात्मक एवं २०. पिउसहो नंदी (को), स्वो में इसका पूर्वार्ध इस प्रकार है पुनरुक्त सी प्रतीत होती हैं। स्वो में ये दोनों गाथाएं पादटिप्पण में हैं। सणंकुमारमोयण, णंदिग्गामे य पितुसहोणंदी। ४. सावत्थि खंदपडिमाए (को)। २१. मंढिय' (हा, दी), मेंढिय' (म)। ५. आउट्टओ (ब, स)। २२. सणियं (ब, स)। ६. वंदइ (ब), यह गाथा मटी (प. २९३)में कुछ अंतर के साथ इस २३. स्वो ४०१/१९५३। प्रकार है २४. कोसंबिसयाणीओ (को), कोसंबीए सताणीओ (स्वो ४०२/१९५४)। हरिसह सेयवियाए, सावत्थी खंद ओयरिउं पडिमा। २५. पडिवई (अ, हा, दी)। लोगो आउट्टिओ (त्थ), वंदे सक्को उ पडिमाए॥ २६. वई (हा, दी, रा)। ७. कोसंबी (हा, दी, रा, चू)। २७. णंदाए (रा)। ८. सूरोरणं (रा)। २८. विजयनामा (हा, दी), बीय (म), बिइय (ब, स, रा)। ९. वाराणसीइ (रा)। २९. धणवाहण (अ), धण धवण (चू)। १०. य (अ, रा)। ३०. संपुड (अ, ब)। ११. महिला (ब, हा, दी) । ३१. दाणं (स्वो ४०३/१९५५)। १२. स्वो ३९९/१९५१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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