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________________ आवश्यक नियुक्ति ७९ २७५. २७६. २७७. सो देवपरिग्गहितो, तीसं वासाइँ वसइ' गिहवासे। अम्मापितीहि भगवं, देवत्तगतेहि पव्वइतो । गोवनिमित्तं सक्कस्स, आगमो वागरेति' देविंदो। कोल्लाग बहुल छट्ठस्स, पारणे पयस वसुहारा ॥ 'बीआ वरवरिया समत्ता' दूइजंतग पितुणो, वयंस तिव्वा अभिग्गहा पंच। 'अचियत्तुग्गहि न वसणं", णिच्चं वोसट्ठमोणेणं ॥ पाणीपत्त. गिहिवंदणं च तहर वद्धमाण१२ वेगवती३ । धणदेव सूलपाणिंदसम्म वासऽट्ठियग्गामे॥ रोद्दा" य सत्तवेदण५, थुति दस सुमिणुप्पलद्धमासे य। मोराए सक्कारं, सक्को अच्छंदए कुवितो६ ॥ तण छेयंगुलि कम्मार, वीरघोस महिसिंदु९८ दसपलियं। बितियेदसम्म१५ ऊरण, बदरीए दाहिणुक्कुरुडे२१ ।। २७८. २७९. २८०. १. वसिय (बपा), उषित्वा वा पाठांतरं (हाटी)। २. "पिईहि (ब, स)। ३. देवत्ति (ब)। ४. स्वो ३४२/१८६०, हाटी और मटी में हत्थुत्तरजोगेण तथा सो देव........निगा २७४, २७५ के बाद भाष्य की ३० गाथाएं हैं लेकिन स्वो एवं को में पहले संवच्छरेण आदि ५ भाष्य (स्वो १८६१-६५, को १८७५-७९) गाथाओं के बाद हत्थुत्तरजोगेण (निगा २७४) गाथा है। फिर उसके बाद सारस्सय.......से लेकर बहिया य (स्वो १८६७-९२, को १८८१-१९०८, १८९६ एवं १८९७ को छोड़कर) तक की २५ भाष्य गाथाएं हैं। ५. वागरिंसु (बपा, अपा, लापा, हाटीपा, मटीपा)! ६. कोल्लाबहुले (हा, दी)। ७. स्वो ३४४/१८९३। ८. "तुग्गहऽनिवसण (म)। ९. स्वो ३४५/१८९४। १०. पाणिप्पत्तं (स्वो)। ११. तओ (हा, दी)। १२. वड्डमाण (म)। १३. वेगमदी (स्वो ३४६/१८९५)। १४. रुद्दा (ब, म)। १५. वेयणि (चू)। १६. स्वो ३४७/१८९६, इस गाथा के बाद सभी हस्तप्रतियों में भीमट्टहास (स्वो १८९७, को १९१३, हाटीभा. ११२) तालपिसायं... (स्वो १८९८, को १९१४, हाटीभा. ११३) मोहे य...(स्वो १८९९, को १९१५, हाटीभा. ११४) ये तीन मूभा: की गाथाएं मिलती हैं तथा इसके बाद निम्न अन्यकर्तृकी गाथा मिलती है मोरागसन्निवेसे, बाहि सिद्धत्थतीतमाईणि। साहइ जणस्स अच्छंद, पओसो छेयणे सक्को॥ यह गाथा को (१९१६) में भागा के क्रम में है। हाटी (पृ. १२९) में इसके लिए ‘इयं गाथा सर्वपुस्तकेषु नास्ति, सोपयोगा च' का उल्लेख है तथा दीपिका में 'इयं चान्यकर्तृकी गाथा' का उल्लेख है। १७. तणु (अ)। १८. "सिंधु (हा), "सिंद (अ, स)। १९. बिइयंद (रा, ला)। २०. ऊरणग (म)। २१. "क्कुरडे (अ, ब), स्वो ३४८/१९००। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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