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________________ एयाई आवश्यक नियुक्ति २३६/३७. परियाओ पव्वज्जाऽभावाओ नत्थि वासुदेवाणं। होति बलाणं सो पुण, पढमऽणुयोगाओं नायव्वो' । २३६/३८. एगो य सत्तमाए, पंच य छट्ठीइ पंचमी२ एगो। एगो य चउत्थीए, कण्हो पुण तच्चपुढवीए । २३६/३९. अटुंतगडा रामा, एगो पुण बंभलोगकप्पम्मि। उववण्णु तओ चइडं, सिज्झिस्सइ भारहे वासे ।। १. इस गाथा के बाद प्रायः सभी हस्तप्रतियों में गाथा 'नवकं ऽन्याऽव्या' उल्लेख के साथ ९ अन्यकर्तृकी गाथाएं मिलती हैं। हाटी में ये टिप्पण में दी हुई हैं वीसभूइ पव्वइए, धणदत्त समुद्ददत्त सेवाले। पियमित्त ललियमित्ते, पुणव्वसू गंगदत्ते य॥१॥ समप्र २४२ गा.१ नामाई, पुव्वभवे आसि वासुदेवाणं। इत्तो बलदेवाणं, जहक्कम कित्तइस्सामि ॥२॥ समप्र २४२ गा. २ विस्सनंदी सुबुद्धी य, सागरदत्ते असोय ललिते य। वाराह धण्णसेणे, अपराइय रायललिए य॥३॥ समप्र २४२ गा. ३ संभूत सुभद्द सुदंसणे य सेजंस कण्ह गंगे य। सागर समुद्दनामे, दमसेणे अपच्छिमे ॥४॥ तु. समप्र २४३ गा.१ एते धम्मायरिया, कित्तीपरिसाण वासुदेवाणं । पुव्वभवे आसीया, जत्थ निदाणाइ कासी य॥५॥ समप्र २४३ गा. २ महुरा य कणगवत्थू, सावत्थी पोयणं च रायगिहं। कायंदी मिहिला वि य, वाणारसि हत्थिणपुरं च ॥६॥ तु. समप्र २४४ गा.१ गावी जूए संगामे, इत्थी पाराइए य रंगम्मि । भज्जाणुराग गुट्ठी, परइड्ढी माउगा इय॥७॥ समप्र २४५ गा. १ महसुक्का पाणय लंतगा उ सहसारओ य माहिंदा। बंभा सोहम्म सणंकुमार नवमो महासुक्का ॥८॥ तिण्णेवणत्तरेहिं, तिण्णेव भवे तहा महासुक्का। अवसेसा बलदेवा, अणंतरं बंभलोगचुया ॥९॥ २. पंचमा (रा, ला)। ३. वो १७६३, समप्र २४७/१, द्र. टिप्पण २३६/१ । ८. इस गाथा के उत्तरार्ध के पाठांतर निम्न प्रकार से मिलते हैं उववन्नो तत्थ भोए, भुत्तुं अयरोवमं दस उ (म, दी, बपा, लापा) तत्तो चई चइत्ताणं, सिज्झिहिती भरधवासम्मि (स्वो) तत्तो वि चइत्ताणं, (को), तु. समप्र २४७/३, स्वो १७६५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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