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________________ आवश्यक नियुक्ति १८६/१४. अद्धट्ठमलक्खाई, वासाणमणंतई कुमारत्तं। तावइयं परियाओ, रजम्मी हो ति पण्णरस ॥ १८६/१५. धम्मस्स कुमारत्तं, वासाणऽड्ढाइयाइ लक्खाई। तावइयं परियाओ, रज्जे पुण होंति पंचेव ॥ १८६/१६. संतिस्स कुमारत्तं, ‘मंडलि-चक्किपरियाय'३ चउसुं पि। पत्तेयं पत्तेयं, वाससहस्साणि पणवीसं ॥ १८६/१७. एमेव य कुंथुस्स वि, चउसु वि ठाणेसु होंति पत्तेयं । तेवीससहस्साई, वरिसाणऽद्धट्ठमसया य" ॥ १८६/१८. एमेव अरजिणिंदस्स, चउसु वि ठाणेसु होति पत्तेयं । इगवीससहस्साई, वासाणं होंति नायव्वा ॥ १८६/१९. मल्लिस्स वि वाससतं, गिहवासे सेसयं तु परियाओ। चउपण्णसहस्साइं, नव चेव सयाइ पुण्णाई॥ १८६/२०. अद्धट्ठमा सहस्सा, कुमारवासो उ सुव्वयजिणस्स। तावइयं परियाओ, पण्णरससहस्स रज्जम्मि॥ १८६/२१. नमिणो कुमारवासो, वाससहस्साइ दोण्णि अद्धं च। तावइयं परियाओ, पंचसहस्साइ रजम्मि । १८६/२२. तिण्णेव य वाससता, कुमारवासो अरिट्ठनेमिस्स। सत्त य वाससताइं, सामण्णे होति परियाओ॥ १८६/२३. पासस्स कुमारत्तं, तीसं परियाय सत्तरी होति। तीसा य वद्धमाणे, बायालीसा उप परियाओ। १८६/२४. उसभस्स पुव्वलक्खं, पुव्वंगूणमजितस्स तं चेव। चउरंगूणं लक्खं, पुणो पुणो जाव सुविधि त्ति । १८६/२५. सेसाणं परियाओ, कुमारवासेण सहियतो भणितो। पत्तेयं पि य पुव्वं, सीसाणमणुग्गहट्ठाए ।। १. तावईयं (अ, रा)। २. रज्जम्मि य (म, ला)। ३. मंडलियं च (हा, दी), “परियाओ (ब, ला), याइ (स)। ४. वरसा (अ), "सयाई (रा, ला, स)। ५. य (अ, म, रा)। ६. इस गाथा की पुनरावृत्ति हुई है (देखें गा. १८२) । प्रायः सभी हस्तप्रतियों में इसका प्रथम चरण ही मिलता है। यह गाथा यहां अतिरिक्त सी प्रतीत होती है। दोनों भाष्यों तथा चूर्णि में भी यह गाथा यहां निगा के क्रम में निर्दिष्ट नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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