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________________ ५६ श्री कवि किशनसिंह विरचित परिग्रह परिमाण व्रतके अतिचार चौपाई क्षेत्र कहावे धरती मांहि, हल खेडनिकी जो विधि आहि । वास्तु कहावे रहवा तणा, मंदिर हाट नोहरा तणा ॥३४९॥ हिरण्य रूपाको परमाण, करै जितो राखै बुधिवान । सुवरण सोनो ही जाणिये, ताकी मरज्यादा ठाणिये ॥३५०॥ धन महिषी घोटक अरु गाय, हस्ती बैल ऊंट जे थाय । इत्यादिक चौपद जे सही, तिन सिगरेकी संख्या गही ॥३५१॥ सालि मूंग गोधूम अरु चणा, नाज विविधके जे है घणा । इन सबकी मरज्यादा गही, बहुत जतनतें राखै सही ॥३५२॥ खरच जितो घरमांही होय, तितनो नाज खरीदै सोय । वणिज निमित्त जेतो परमाण, जीव प नहि तैसे जाण ॥३५३॥ बहु उपाय करिकै राखिहै, ऐसे जिनवाणी भाखिहै । वरस एकमें बीके नहीं, दूजो वरस आइ है सही ॥३५४॥ मरज्यादा माफिक थो जितो, अधिक लेय नहि राखे तितो । दुपद परिग्रहमें ए कहे, वनिता दासी दास हू लहे ॥३५५॥ क्षेत्रका अर्थ वह पृथिवी है जिसमें हल आदि चलाकर अन्न उपजाया जाता है और वास्तुका अर्थ रहनेका मकान, बाजार तथा मोहोल्ला आदि है। इनके परिमाणका उल्लंघन करना क्षेत्रवास्तुप्रमाणातिक्रम नामका अतिचार है ॥३४९॥ हिरण्य चांदीको कहते हैं और सुवर्णका अर्थ सोना है। ज्ञानीजन इसका प्रमाण करते हैं अर्थात् इसकी मर्यादा रखते हैं। इस मर्यादाका उल्लंघन करना सो हिरण्यसुवर्णातिक्रम नामका अतिचार है॥३५०॥ गाय, भेंस, घोड़ा, हाथी, बैल तथा ऊँट आदि चौपायोंको धन कहते हैं। परिग्रह परिमाण व्रतमें इन सबकी संख्याका निर्धार किया जाता है। धान्य, मूंग, गेहूँ और चना आदि जो नाना प्रकारके अनाज हैं वे धान्य कहलाते हैं। इन सबकी जो मर्यादा ली है उसकी बहुत यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिये ऐसा जिनागममें कहा है। यदि संग्रहित अनाज एक वर्षमें न बिक सके तो आगामी वर्षमें उतना ही अनाज खरीदे, जितनी मर्यादा की थी, अधिक खरीद न करे। उपर्युक्त धन-धान्यकी मर्यादाका उल्लंघन करना धनधान्यप्रमाणातिक्रम नामका अतिचार है। स्त्री तथा दासी दास द्विपद परिग्रह कहलाते है इनकी सीमाका उल्लंघन करना सो दासीदास प्रमाणातिक्रम नामका अतिचार है ॥३५१-३५५॥ कुप्य परिग्रहमें बर्तन, चन्दन आदिकी लकड़ीसे निर्मित उपकरण तथा रेशम, १ सालि उरद गौहूं अरु चना स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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