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________________ क्रियाकोष ५१ उदर भरो भोजन नहि करे, तातें इन्द्री बहु बल धरे । ए नव वाडि पालिये जबै, शील शुद्ध व्रत पलिहै तबै ॥३२२॥ शील चरित्र कथन सवैया ब्राह्मी सुंदरी ने आदि दे के सोला सती भई, शील परभाव लिंग छेदी सुर ते भई । तिनि मांही केऊ नृप सोई शिवथान लह्यो, केऊ मोक्ष जैहें भूप होय तहांतें चई । अनन्तमती तुंकारी ने आदि ले केती कहूं, महा कष्ट पाई सील दिढता मई ठई । सीलतें अनन्त सुख लहे कछु संसो नाहि, सील भंग भये भ्रमें नरक 'महा पई॥३२३॥ दोहा सेठ सुदर्शन आदि दे, शील तणे परभाव । लहै अनन्ते मोक्ष सुख, कहां लो करो बढाव ॥३२४॥ ब्रह्मचर्य व्रत लिया है उसे अपने मुखसे भी कभी कामकथा नहीं करनी चाहिये । व्रती मनुष्यको पेटभर भोजन भी नहीं करना चाहिये क्योंकि उससे इन्द्रियोंका बल पुष्ट होता है। ग्रन्थकार कहते हैं कि जब इन नौ बाड़ोंका पालन किया जाता है तभी शुद्ध शील व्रतका पालन होता है। भावार्थ-शील व्रतकी रक्षाके लिये निम्नलिखित नौ बातोंका त्याग करना चाहिये-१. स्त्री संसक्त निवासका त्याग २. रुचि और प्रेमपूर्वक स्त्री निरीक्षणका त्याग ३. स्त्रियोंसे रागवर्धक मधुर वार्तालापका त्याग ४. पूर्वभोग स्मरणका त्याग ५. कामोत्तेजक गरिष्ठ आहारका त्याग ६. शरीरकी सजावटका त्याग ७. स्त्रीकी शय्या पर बैठनेका त्याग ८. कामकथा श्रवण त्याग और ९. पेटभर भोजनका त्याग ॥३१७-३२२॥ आगे शीलकी महिमा कहते हैं__ब्राह्मी और सुन्दरीको आदि लेकर सोलह सती हुई हैं जो शीलके प्रभावसे स्त्रीलिंग छेद कर देव हुई हैं। उनमें कितने ही देव, राजा होकर मोक्षको प्राप्त कर चुके हैं, कोई स्वर्गसे च्युत हो राजा होकर मोक्ष प्राप्त करेंगे। अनन्तमती तथा तुंकारी आदि कितनी ही सतियोंने महान कष्ट पाकर भी शील व्रतमें दृढ़ता रखी। परमार्थ यह है कि शीलसे अनन्त सुख प्राप्त होता है इसमें संशय नहीं है और शील भंग होनेसे यह जीव नरकमें पड़ कर परिभ्रमण करता है ॥३२३॥ ग्रन्थकर्ता कहते हैं कि अधिक विस्तार कहाँ तक करूँ ? इतना ही कहना पर्याप्त है कि सुदर्शन सेठको आदि लेकर अनन्त नर शीलके प्रभावसे मोक्षसुखको प्राप्त कर चुके हैं ॥३२४॥ १ मही पई न० मांही सही स० २ फल स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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