________________
क्रियाकोष
१९ चौपाई तातौ जल अरु छाछ मिलाय, तामैं सौंले लूण डराय । भुजिया बडा नाख तिहि मांहिं, खावै बुद्धिहीन सो ताहिं ॥११९॥ प्रथम छाछ कांजीके जाहिं, तातौ जल ता मांहि पराय । अवर नाजको कारन थाय, उपजै जीव न पार लहाय ॥१२०।। याकी मरजादा अति हीण, तातें तुरत तजो परवीण । ठंडी छाछ तासमें जाण, ताते विदलहुं दोष वखाण ॥१२॥ प्रथम हि छाछ उष्ण अति करै, अरु वैसे ही जल कर धरै । जब दोऊ अति शीतल थाय, तब दुहुंवनको देय मिलाय ॥१२२॥ अगनि चढाय गरम फिरि करै, जब वह शीतलताको धरै । भजियादिक तामें दे डार, तसु मर्यादाको इम पार ॥१२३॥
उक्तं च गाथा २चउ एइंदी विण्णि छह अट्ठह तिण्णि भणंति । दह चौरिंदी जीवडा बारह पंच भणंति ॥१२४॥
छन्द चाल
जब चार मुहूरत जांहि, एकेन्द्री जीव उपजाहि ।
बारा घटिका जब जाये, बेइन्द्री तामें थाये ॥१२५॥ मनका समस्त संदेह छोड़ो ॥११७-११८॥ गर्म जल और छांछ मिलाकर उसमें मसाले तथा नमक डालते हैं, पश्चात् उसमें भुजिया (पकोड़ी) तथा बड़ा डालकर जो खाते हैं वे बुद्धिहीन हैं। पहले छांछ अर्थात् कांजीमें गर्म जल डाला जाता है, पश्चात् भुजिया आदि अनाज डाला जाता है। इसके संयोगसे उसमें इतने जीव उत्पन्न होते हैं कि जिनका पार नहीं होता ॥११९-१२०॥ इसकी मर्यादा अत्यन्त कम है इसलिये प्रवीण जनोंको इसका शीघ्र ही त्याग करना चाहिये । छांछ ठण्डी रहती है इसलिये उसमें द्विदलका दोष बतलाया गया है। इसकी मर्यादा इस विधिसे बनती है-प्रथम छांछ
और जलको पृथक् पृथक् गर्म करे, जब दोनों शीतल हो जावे तब दोनोंको मिलावे। पश्चात् दोनोंको फिर आग पर चढ़ा कर गर्म करे, पुनः उतारने पर जब वे शीतल हो जावें तब उसमें भुजिया आदिकको डाले। इसकी मर्यादा चार मुहूर्तके पहले पहले तक है पश्चात् उसमें जीवोंकी उत्पत्ति शुरू हो जाती है ॥१२१-१२३।। जैसा कि गाथामें कहा है
चार मुहूर्त बीतने पर एकेन्द्रिय, छह मुहूर्त बीतने पर दो इन्द्रिय, आठ मुहूर्त बीतने पर तीन इन्द्रिय, दश मुहूर्त बीतने पर चार इन्द्रिय और बारह मुहूर्त बीतने पर पंचेन्द्रिय जीव उत्पन्न हो जाते हैं ।।१२४।। यही भाव ग्रंथकार छन्द द्वारा प्रकट करते हैं
१ राई न० स० २ दोहकका अर्थ स्वयं कवि १२५-१२६ वें छन्दमें प्रकट करते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org