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________________ (३) प्रकाशकीय (प्रथमावृत्ति) श्री परमश्रुत प्रभावक मण्डल, श्रीमद् राजचंद्र आश्रमकी ओरसे कवि श्री किशनसिंह विरचित इस ‘क्रियाकोष' का आज प्रथम संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें अत्यन्त हर्ष होता है क्योंकि श्रीमद् राजचंद्रने उपदेशनोंध-१५ में जो सत्श्रुतके नाम गिनाये हैं उनमें एक यही ग्रन्थ मुद्रितरूपमें अनुपलब्ध था। आजसे ४-५ वर्ष पूर्व श्रीमद् राजचंद्र द्वारा स्थापित श्री परमश्रुत प्रभावक मण्डलके सत्त्वाधिकारियोंने इस ग्रंथको प्रकाशित करनेका निर्णय लिया था, किन्तु मूल ग्रन्थ पुरानी हिंदी भाषामें तथा पद्यरूपमें होनेसे उसी रूपमें प्रकाशित करना उपयोगी नहीं था। अतः हमने इसका हिंदी गद्यार्थ लिखवानेका निर्णय किया और प्रस्ताव रखनेपर सागर निवासी श्री पन्नालालजी साहित्याचार्यने जिन्होंने पहले इसी संस्था द्वारा प्रकाशित 'समयसार' का संपादनसंशोधन कार्य किया था, उन्होंने सहर्ष इस कार्यको स्वीकार किया एवं लगभग १ वर्षमें उन्होंने प्रस्तुत प्रकाशित क्रियाकोषकी पाण्डुलिपि हमें सुपुर्द कर दी। तत्पश्चात् अहिंदीभाषी क्षेत्रकी एक छोटी प्रेसमें यह कार्य सौंपनेसे मुद्रणकार्यमें लगभग दो वर्ष जितना समय निकल गया। फिर भी अनेक मुश्केलियोंको पारकर आज यह ग्रंथ लोकभोग्य रूपमें सुंदर मुद्रणके साथ हिंदीभाषी पाठकोंके सम्मुख आ सका है, इसका हमें अत्यन्त आनन्द इस ग्रंथके संबंधमें श्रीमद् लिखते हैं “ 'क्रियाकोष' का आद्यंत अध्ययन करनेके बाद सुगम भाषामें उस विषयमें एक निबंध लिखनेसे विशेष अनुप्रेक्षा होगी, और वैसी क्रियाका वर्तन भी सुगम है, ऐसी स्पष्टता होगी, ऐसा संभव है।" (पत्रांक ८७५) “ 'क्रियाकोष' इससे सरल और कोई नहीं है। विशेष अवलोकन करनेसे स्पष्टार्थ होगा। शुद्धात्मस्थितिके पारमार्थिक श्रुत और इन्द्रियजय दो मुख्य अवलंबन हैं। सुदृढतासे उपासना करनेसे वे सिद्ध होते हैं। हे आर्य ! निराशाके समय महात्मा पुरुषोंका अद्भुत आचरण याद करना योग्य है। उल्लसित वीर्यवान परमतत्त्वकी उपासना करनेका मुख्य अधिकारी है।" (पत्रांक ८७९) पाठकोंसे निवेदन है कि वे इस 'क्रियाकोष' में बताये हुए श्रावकाचारके अनुरूप आहारशुद्धि पूर्वक आदर्शरूप क्रियाओंका पालन कर जीवनको उन्नत बनाये। तभी हमारे प्रकाशनका श्रम सफल होगा। शुभम् भूयात् । श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, अगास । - प्रकाशक वैशाख सुद ८, सं० २०४१ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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