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________________ क्रियाकोष ३०५ छप्पय शांतिनाथ तप चौथि गरभ श्रेयांस सु छठि सहि, विमल गरभ वदि दसमि जनम बारसि जु अनंत हि%3; बारस ही तप जानि शांति शिव जनम सु चौदस, अजित जिनेश्वर गरभ जेठ वदी जान अमावस; धरमनाथ दिन जनम चौथहि बारसि जनम सुपास ही । बारसि सुपारस तप दिवस भाष्यो जेठ सुमास ही ॥१८९१॥ ___ दोहा जेठ मास नव दिवसमें, कल्यानक दस एक । सुर नर नाग खगेश किय, नमहि त्रिविधि कटि टेक ॥१८९२॥ उच्छव जिन चौबीसके, भये एकसौ बीस । वरस मध्य दिन बानवै, व्रत इहि विधि वावीस ॥१८९३॥ लघु कल्यानक नाम या, ताकी विधि सुनि लेह । वरष मांहि पूरन करै, सुरपद दायक एह ॥१८९४॥ चौपाई एक कल्यानक जिहि दिन होय, एकाठानौ करि भवि लोय । दो कल्यानकके दिन सही, करिये नयड जिसी विधि कही ॥१८९५॥ जेठ वद चतुर्थीको शांतिनाथका तप, षष्ठीको श्रेयांसनाथका गर्भ, दशमीको विमलनाथ का गर्भ, द्वादशीको अनन्तनाथका जन्म तथा तप, चतुर्दशीको शांतिनाथका जन्म तथा मोक्ष, जेठ वद अमावसको अजितनाथका गर्भ, जेठ सुद चतुर्थीको धर्मनाथका जन्म और द्वादशीको सुपार्श्वनाथका जन्म तथा तप कल्याणक हुए हैं ॥१८९१।। इस प्रकार जेठ मासके नौ दिनोंमें ग्यारह कल्याणक हुए हैं, जिनका सुर, नाग, नर और विद्याधर राजाओंने उत्सव किया है। उन्हें मन वचन कायसे नमस्कार करता हूँ ॥१८९२॥ चौबीस तीर्थंकरोंके एक सौ बीस कल्याणक होते हैं और वे वर्षके बानवे (९२) दिनमें संपन्न होते हैं। इस व्रतका नाम लघु कल्याणक व्रत है। इसकी विधि सुनो। इस व्रतको एक वर्षमें पूर्ण करना चाहिये। यह व्रत देवपदको देनेवाला है ॥१८९३-१८९४॥ जिस दिन एक कल्याणक हो उस दिन एकठाणा करना चाहिये। जिस दिन दो कल्याणक हों उस दिन ऊनोदर करना चाहिये ।।१८९५॥ २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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