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क्रियाकोष
चौपाई
दुय सुर गनि इकतीस विख्यात, सनतकुमार महेन्द्रहि सात । चार ब्रह्म ब्रह्मोत्तर सही, लांतव कापिष्ठ है द्वय सही || १७९४॥ एक सुक्र महासुक्रह धार, एकहि शतार अरु सहसार । आणत प्राणत आरण तीन, अच्युत लग छह पटल प्रवीण ॥ १७९५॥ नव नव गैवेयक जानिये, नव नवोत्तर इक मानिये | पंच पंचोत्तर पटल जु एक, ए त्रेसठ सुणि धरि सुविवेक ।। १७९६॥ अवरत प्रोषध विधि जिसी, कथा प्रमाण कहों सुनि तिसी । एक पटल प्रति प्रोषध चार, करै एकन्तर चित अवधार ॥ १७९७॥
प्रोषध लगते बेलो एक, करि भविजन मन धरि सुविवेक । ता पीछै प्रोषध चहुँ जान, तिनके पीछै बेलो ठान ॥ १७९८॥
२८७
चहुँ प्रोषध बेलो चहुँ वास, छठ चहुँ अनसन पुनि छठ तास । इह विधि त्रेसठ बार विधान, चहुँ प्रोषध छठ अनुक्रम जान ॥ १७९९॥ त्रेसठ बार जु पूरण थाय, इक लगतो तेलो करवाय । बीच इकंतर असन जु करै, एक भुक्त अंतर नहि परै || १८००॥ इनके बेला अरु उपवास, अनसन दिवस रु तेलो जास । अरु सब दिन इकठे करजोड, सो सुणल्यों भवि चित धरि कोड || १८०१ ।। एक, आनत, प्राणत और आरणमें तीन तथा अच्युतमें तीन इस प्रकार छह, नौ ग्रैवेयकोंके नौ, अनुदिशोंका एक और पंचानुत्तर विमानोंका एक, इस प्रकार सब त्रेसठ पटल हैं । इन पटलोंके बीचमें इन्द्र और चारों दिशाओंमें श्रेणीबद्ध विमान रहते हैं ॥ १७९४-१७९६॥
अब इस व्रतके प्रोषधोंकी विधि सुनिये । एक पटलके प्रति श्रेणीबद्ध विमानोंकी अपेक्षा क्रमसे चार उपवास तथा इन्द्रक विमानकी अपेक्षा एक बेला होता है । पश्चात् दूसरे पटलके इन्द्रककी अपेक्षा एक बेला और उसके बाद क्रमसे चार उपवास होते हैं । इसी प्रकार त्रेसठ पटलों संबंधी बेला और उपवास जानना चाहिये । चार उपवास, बेला और * षष्ठी, इस क्रमसे प्रत्येक पटल संबंधी उपवासादि जानना चाहिये । त्रेसठ पटलोंका व्रत पूर्ण होने पर एक तेला करना चाहिये । बेला और उपवासोंके बीचमें पारणाके दिन एकाशन करे ।। १७९७-१८००।।
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इस व्रतके बेला, उपवास, तेला आदिकी कुल मिलाकर जो संख्या होती हैं उसे हे भव्यजनों! तुम चित्तमें उल्लास धारण कर सुनो ॥। १८०१ ||
* हरिवंश पुराणमें षष्ठीका उल्लेख नहीं है । २५२ उपवास, ६३ बेला और १ तेला-सब मिलाकर ३१६ स्थान और इतनी ही पारणाओंका उल्लेख है ।
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