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________________ क्रियाकोष २५५ समवसरण व्रत दोहा- श्वेत किशन चौदसि तणी, प्रोषध बीस रु चार । शील सहित भविजन करै, समोसरण व्रत धार ॥१६१२॥ आकाश पंचमी व्रत चौपाई भादव सुदि पंचमि उपवास, करे वरत पंचमि आकास । वरष पंच मरयादा जास, शील सहित प्रोषध धरि तास ॥१६१३॥ अक्षय दशमी व्रत चौपाई श्रावण सुदि दशमी को सही, अक्षय दशमि व्रतको जन गही । प्रोषध करे शील जुत सार, तसु मरयाद वरष दश धार ॥१६१४॥ चंदन षष्ठी व्रत चौपाई भादव वदि छठि दिन उपवास, चंदन षष्ठी व्रत धर तास । मन वच काय शील व्रत धार, तसु परमाण वरष छह सार ॥१६१५॥ निर्दोष सप्तमी व्रत चौपाई भादों सुदि सातें निर्दोष, वरत करै प्रोषध शुभकोष । संख्या सात वरष लों जाहि, उद्यापन करि तजिये ताहि ॥१६१६॥ समवसरण व्रतका वर्णन शुक्ल तथा कृष्ण-दोनों पक्षोंकी चतुर्दशियोंके चौबीस उपवास शील सहित करना समवसरण व्रत है। भव्यजीव इसे करते हैं ।।१६१२॥ आकाश पंचमी व्रत भादों सुदी पंचमीके दिन उपवास करना आकाश पंचमी व्रत है। इस व्रतकी अवधि पाँच वर्षकी है। उपवासके दिन शीलव्रत रखना चाहिये ॥१६१३॥ __ अक्षय दशमी व्रत श्रावण सुदी दशमीके दिन शील सहित उपवास करना अक्षय दशमी व्रत है। इसकी मर्यादा छह वर्षकी है ॥१६१४॥ चन्दन षष्ठी व्रत भादों वदी षष्ठीके दिन उपवास करना तथा मन वचन कायसे शीलव्रतका पालन करना चन्दन षष्ठी व्रत है। इसकी मर्यादा छह वर्षकी है ॥१६१५॥ __ निर्दोष सप्तमी व्रत भादों सुदी सप्तमीको उपवास करना निर्दोष सप्तमी व्रत है। यह सात वर्ष तक किया जाता है, पुण्यका भण्डार है । उद्यापन करनेके पश्चात् इसे छोड़ना चाहिये ।।१६१६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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