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क्रियाकोष
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मेघमाला व्रत
चौपाई वरत मेघमाला तसु नाम, भादव मास करे सुखधाम । प्रोषध पडिवा तीन बखान, आठै दुहुँ चौदसि दुहुँ जान ।।१६०३॥ सात वास चौईस इकंत, त्रिविधि शील जुत करिये संत । वरष पांचलों तसु मरयाद, सुर सुख पावै जुत अहलाद ।।१६०४॥
ज्येष्ठ जिनवर व्रत
चौपाई वरत जेष्ठ जिनवर भवि लोई, ज्येष्ठ मासमें करिये सोय । किशन पक्ष पडवा उपवास, एकासण चौदा पुनि तास ॥१६०५॥ प्रोषध शुक्ल प्रतिपदा करै, पुनि एकन्त चतुर्दश धरै । ज्येष्ठ मासके दिवस जु तीस, तास सहित व्रत करे गरीस ॥१६०६॥ वृषभनाथ जिन पूजा रचै, गीत नृत्य वाजिन सुसचै । अति उछाह धरि हिये मझार, मरयादा लखि कथा विचार ॥१६०७॥
षट्रसी व्रत
___ अडिल्ल दूध दही घृत तेल लूण मीठो सही, तजै पाख दोय दोय सकल संख्या कही;
मेघमाला व्रतका वर्णन सुखका स्थानभूत मेघमाला व्रत संपूर्ण भाद्र मासमें किया जाता है। तीन पडिवा, दो अष्टमी और दो चतुर्दशी इन सात तिथियोंमें उपवास तथा शेष चौबीस तिथियोंमें एकाशन किया जाता है। मन, वचन, कायसे शीलव्रतका पालन किया जाता है। पाँच वर्षकी इसकी मर्यादा है। इसके पालन करने वाले हर्षपूर्वक स्वर्गसुखको प्राप्त होते हैं ॥१६०३-१६०४॥
ज्येष्ठ जिनवर व्रतका वर्णन कितने ही भव्यजीव ज्येष्ठ जिनवर व्रत करते हैं। यह व्रत जेठ मासमें किया जाता है। कृष्ण पक्षके पडिवाके दिन उपवास करनेके बाद चौदह एकाशन करे। पश्चात् शुक्ल पक्षके प्रतिपदाके दिन प्रोषध (उपवास) करे। पश्चात् चौदह एकाशन करे। जेठ मासके तीस दिन तक यह व्रत किया जाता है। वृषभनाथ भगवानकी गीत, नृत्य और वादित्रके साथ पूजा करे। हृदयमें अत्यन्त उत्साह रखकर मर्यादाको पूर्ण करे ॥१६०५-१६०७॥
__ षट्रसी व्रतका वर्णन दूध, दही, घी, तेल, नमक और मीठा ये भोजनके छह रस हैं। इनमेंसे दो दो पक्ष तक
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