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क्रियाकोष
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अजहूँ जे या व्रतको धरै, दरसन त्रिविधि शुद्धता करै । ताको फल शिव है तहकीक, श्री जिन आगम भाष्यो ठीक ॥१५९१॥
लब्धि विधान व्रत
चौपाई भादौ माघ चैत मधि जान, वदि पंदरसि एकन्तहि ठान । पडिवा दोयज तीज प्रवान, थापै तेलौ लबधि-विधान ॥१५९२॥ सकति प्रमाण जु पोसह धरै, चौथ दिवस एकासण करै । पांचौ दिवस शीलको पाल, तीन वरस व्रत करहि सम्हाल ॥१५९३॥ पुत्री तीन कुटुम्बी तणी, जिन व्रत लियो एम मुनि भणी । विधिवत करि उद्यापन कियो, तियपद छेदि देव पद लियो ॥१५९४॥ चय द्विज-सुत है पंडित नाम, गौतम गर्ग रु भार्गव नाम । महावीरके गणधर भये, तिनके नाम इन्द्र ए दिये ॥१५९५॥ इन्द्रभूति गौतमको नाम, अग्निभूत दूजो अभिराम । वायुभूत तीजेको सही, वरत तणो तीनों फल लही ॥१५९६॥
आज भी सम्यग्दर्शनकी त्रिविध शुद्धतापूर्वक जो इस व्रतको धारण करते हैं वे उसके फलस्वरूप निश्चय ही मोक्ष प्राप्त करते हैं, ऐसा जिनागममें कहा गया है ॥१५९१॥
लब्धि विधान व्रत भादों, माघ और चैत्र मासके मध्य यह व्रत आता है। कृष्णपक्षकी पन्द्रसको एकाशन कर पडिवा, दूज और तीजके तेलाकी स्थापना करे ऐसा यह लब्धि-विधान व्रत है। शक्तिके अनुसार प्रोषध भी किया जा सकता है। चौथके दिन एकाशन करे, और पाँचों दिन शीलका पालन करे। तीन वर्ष तक सम्हाल कर इस व्रतको करे ॥१५९२-१५९३॥ ___ एक कुटुम्बी गृहस्थकी तीन पुत्रियोंने मुनिराजके कहे अनुसार इस व्रतको किया, और विधिपूर्वक पालन कर अन्तमें उद्यापन किया जिसके फलस्वरूप स्त्रीलिंग छेदकर वे देवपदको प्राप्त हुई। वहाँसे चयकर एक ब्राह्मण पण्डितके यहाँ गौतम, गर्ग और भार्गव नामक पुत्र हुए जो भगवान महावीरके गणधर हुए। इन्द्रने तीनोंके नाम इस प्रकार रक्खे-गौतमका नाम इन्द्रभूति, गर्गका नाम अग्निभूति और भार्गवका नाम वायुभूति । तीनोंने व्रतका इस प्रकार फल प्राप्त किया-इन्द्रभूति उसी भवसे मोक्ष गये, दूसरे और तीसरेने भी उत्तम पद प्राप्त किया।
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