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क्रियाकोष
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स्नान क्रिया करिकै थिर होई, धौत वसन पहरै तनि सोई। बिना कंचुकी सो नहि रहै, पूजा करै जिनागम कहै ॥१४५८॥ बडी साखि मैना सुन्दरी, कुष्ट व्याधि पति-तनकी हरी । लै गंधोदक सींची देह, सुवरण वरण भयो गुण-गेह ॥१४५९॥ अनंतमती उर्विल्या जाणि. रेवतीय चेलना बखानि । मदनसुन्दरी आदिक घणी, तिन कीनी पूजा जिन तणी ॥१४६०॥ लिंग नपुंसक धारी जेह, जिनवर पूजा करिहै तेह । प्रतिमा-परसणको निरधार, ग्रंथनिमैं सुणि लेहु विचार ॥१४६१॥ नर वनिता रु नपुंसक तीन, पूजा-करण कही विधि लीन । अब जिनिकौ पूजा सरवथा, करण जोगि भाषी नहि जथा ॥१४६२॥ औढेरो काणो भणि अंध, फूलो धुंधि जाति चखि बंध । प्रतिमा अवयव सूझै नहीं, जाकौ पूजा करन न कही ॥१४६३॥ नासा कान कटी आंगुरि, हुई अगनि दाझे वांकुरी ।
षट् अंगुलिया कर अरु पाय, पूजा करणी जोगि न थाय ॥१४६४॥ जिसने स्नान कर स्थिर चित्त होकर धुले वस्त्र धारण किये हैं तथा वक्षःस्थल पर कंचुकी पहिन रक्खी है ऐसी स्त्री जिनपूजा करे, यह जिनागममें कहा गया है ॥१४५८॥ जिनपूजा करनेवाली स्त्रियोंमें सबसे बड़ा उदाहरण मैनासुन्दरीका है जिसने गन्धोदक छिड़ककर पतिके शरीरकी कुष्ठ बाधा दूर की थी और पति सुवर्णवर्ण तथा गुणोंका घर हुआ था। इसके सिवाय अनन्तमती, उर्विला, रेवती, चेलना और मदनसुन्दरी आदि अनेक स्त्रियाँ ऐसी हुई हैं जिन्होंने जिनपूजा की थी॥१४५९-१४६०॥ ___नपुंसक लिंगवाला भी भगवानकी पूजा कर सकता है परन्तु उसे प्रतिमा स्पर्श करनेका अधिकार है या नहीं, इसका निश्चय ग्रन्थोंको सुनकर तथा विचार कर करना चाहिये। आगममें पुरुष, स्त्री और नपुंसक, इन तीनोंकी पूजा करनेकी विधि कही गई है। आगे जिन्हें पूजा करना सर्वथा योग्य नहीं है उनका कथन करते हैं ।।१४६१-१४६२॥
जो उन्मत्त हो, काना हो, अंधा हो, जिसकी आँखोंमें फुली हो, धुंध लगती हो, काच बिंद हो और जिसे प्रतिमाके अवयव नहीं दीखते हो उसे जिनपूजा करना नहीं कहा गया है ॥१४६३।। जिसकी नाक, कान और अंगुली कटी हो, जिसकी अंगुली अग्निसे जलकर टेढ़ी हो गई हो तथा जिसके हाथ और पैर छह अंगुलियोंवाले हो वह पूजा करने योग्य नहीं है॥१४६४॥
१ करहिं न तेह स०
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