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________________ २२८ श्री कवि किशनसिंह विरचित सीस सिखा ढिग करिये एह, दूजो तिलक ललाट करेह । कण्ठ तीसरो चौथो हिये, कान पांचमो ही जानिये ॥१४४०॥ छट्टो भुजा कूखि सातवों, अष्टम हाथ नाभिमें नवों । एह तिलक नव ठाम बनाय, अरु गहनो तन विविध रचाय ॥१४४१॥ मुकुट सीस परि धारै सोय, कण्ठ जनेऊ पहिरै जोय । भुज बाजूबंध राजत करै, कुण्डल कानहि कंकण धरै ॥१४४२॥ कटिसूत्र रु कटिमेखल धरै, क्षुद्र घंटिका सबदहि करै । रतनजडित सुवरणमय जाणि, दस अंगुलनि मुद्रिका ठाणि ॥१४४३॥ पाय सांकलां घूघरु धरै, मधुर शब्द बाजै मन हरै । भूषण भूषित करिवि शरीर, पूजा आरम्भै वर वीर ॥१४४४॥ पद्धरी छंद पूर्वाह्निक पूजा जो करेइ, वसु दरव मनोहर करि धरेइ । मध्याह्न पूज समए सु एह, मनु हरण कुसुम बहु खेपि देह ॥१४४५॥ अपराह्न भविक जन करिह एव, दीपहि चढाय बहु' धूप खेव । इहि विधि पूजा करितीनकाल,शुभकंठ उचारियजयहमाल ॥१४४६॥* तिलक कहाँ करने चाहिये उनका अब वर्णन करता हूँ सो हे विद्वज्जनों ! उसे सुनो। पहला तिलक चोटीके पास शिरमें लगावे, दूसरा तिलक ललाट पर, तीसरा तिलक कण्ठमें, चौथा तिलक हृदयमें, पाँचवाँ तिलक कानोंके पास, छठवाँ तिलक भुजाओंमें, सातवाँ तिलक कुखमें, आठवाँ तिलक नाभिमें और नौवाँ तिलक हाथोंमें लगावे । इस प्रकार ये नौ तिलकोंके स्थान बताये। अब शरीर पर नाना प्रकारके आभूषण धारण करनेकी चर्चा करते हैं। सिर पर मुकुट धारण करे, गले में जनेऊ पहिने, भुजाओंमें बाजूबंद सुशोभित करे, कानोंमें कुण्डल, हाथोंमें कंकण, कमरमें रुणझुण करनेवाली क्षुद्र घण्टिकाओंसे सुशोभित मेखला, दशों अंगुलियोंमें रत्नजड़ित सुवर्णमय मुद्रिकाएँ और पैरोंमें साँकल तथा मधुर शब्दोंसे मनको हरनेवाली धुंधरु धारण करे। इस प्रकार आभूषणोंसे अपने शरीरको विभूषित कर जिनेन्द्रदेवकी पूजा प्रारंभ करे ॥१४३९-१४४४॥ प्रातःकालके समय जो पूजा करे वह मनोहर अष्ट द्रव्योंसे करे, मध्याह्नके समय नाना प्रकारके सुन्दर पुष्पोंसे करे और अपराह्न कालमें दीपक चढ़ाकर तथा धूप खेकर करे। इस प्रकार तीनों समय पूजा कर कण्ठसे जयमालाका उच्चारण करे ॥१४४५-१४४६।। * छन्द १४४६ के आगे न० और ग० प्रतिमें निम्न छन्द अधिक है पूर्वाह्निक रवि उगत कराहि, मध्याह्निक वासर मध्यमांहि । दिन अस्त होत पहली प्रमाण, अपराह्निक पूजा करहि जाण ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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