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________________ क्रियाकोष २१९ जिन वासुपूज्य पद पूजत, भाजै मंगल दुख धूजत । बुध क्रूर पणे जब थाय, वसु जिन पूजै मन लाय ॥१३८८॥ अडिल्ल छंद विमल अनन्त सुधर्म शांति जिन जानिये, कुन्थु अरह नमि वर्धमान मन आनिये; आठ जिनेसुर चरण सेव मन लाय है, बुद्धतणो जो दोष तुरत नसि जाय है॥१३८९॥ रिषभ, अजित, संभव, अभिनन्दन वंदिये, सुमति, सुपारस, शीतल मन आनंदिये; श्री श्रेयांस जिनंद पाय पूजत सही; सुगुरु दोष नसाय यही आगम कही ॥१३९०॥ सुविधिनाथ पद पूजित शुक्र नसाय है, मुनिसुव्रतको नमत दोष शनि जाय है; नेमिनाथ पद वंदत राहु रहै नहीं, मल्लि रु पारस भजत केतु भजिहै सही ॥१३९१॥ जनम लगनके समै कर ग्रह जो परै, अथवा गोचरमांहि अशुभ जे अनुसरै; तिनि तिनि ग्रहकै काजि पूजि जिनकी कही, जाप करै जिन नाम लिये दुष है नहीं ॥१३९२॥ लगाना चाहिये-विमल, अनन्त, सुधर्म, शांति, कुन्थु, अरह, नमि और वर्धमान । इन आठ जिनेन्द्रोंके चरणोंकी सेवामें मन लगानेसे बुध ग्रहका दोष तत्काल नष्ट होता है ॥१३८८-१३८९॥ ऋषभ, अजित, संभव, अभिनन्दन, सुमति, सुपार्थ, शीतल और श्रेयांसनाथ जिनेन्द्रके चरणोंकी पूजासे बृहस्पति ग्रहका दोष नष्ट हो जाता है ऐसा आगममें कहा है ॥१३९०।। सुविधिनाथ-पुष्पदन्त भगवानके चरणोंकी पूजासे शुक्र ग्रहका दोष नष्ट होता है। मुनिसुव्रतनाथको नमस्कार करनेसे शनि ग्रहका दोष दूर होता है। नेमिनाथकी चरण वन्दनासे राहु ग्रहका दोष नहीं रहता है। मल्लिनाथ और पार्श्वनाथकी आराधनासे केतु ग्रहका दोष दूर होता है ॥१३९१॥ जन्म-लग्नके समय जो दुष्ट (पीड़ाकारक) ग्रह (राहु, केतु, शनि, मंगल) पड़े हों, अथवा केन्द्रमें अशुभ ग्रहका योग हो तब उन उन ग्रहोंकी शांतिके लिये जिन जिनेश्वरदेवकी पूजाका विधान बताया है उनके नामस्मरण तथा पूजनसे शांतिकी प्राप्ति होती है और दुःख दूर रहते हैं ॥१३९२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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