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________________ क्रियाकोष २१५ छंद चाल तंदुल रूपो सितवास, रवि शशिको दान प्रकास । रातो कपडो गोधूम, तांबो गुल द्यौ सुत भूम ॥१३६०॥ बुध केतु दूहुं इकसे ही, मूंगादि हों इन देही । गुर जरद वसन दे हेम, अरु दालि चनन करि प्रेम ॥१३६१॥ जिम कहे शुक्रको दान, तिमही दे मूढ अयान । शनि राहु श्याम भणि लोह, तिल तेल उडद तसु दोह ॥१३६२॥ हस्ती अरु घोटक श्याम, जुत श्याम बइल रथ नाम । इत्यादिक दान बखानै, ग्रह शांति निमित मन आने ॥१३६३॥ नवग्रह सुरपदके धारी, तिनके नहि कवल अहारी । किह काज नाज गुल दैहै, सुर केम तृपतिता लैहै ॥१३६४॥ हाथी घोडा असवारी, तिनि निमित देह डर धारी । उनके विमान अति सार, सुवरण नग जडित अपार ॥१३६५॥ भू परि कछु पाय न चालै, किह कारण दानहि झालै । तातें ए दान अनीति, शिवमत भाषै विपरीति ॥१३६६॥ चावल, चाँदी और सफेद वस्त्र यह सूर्य चन्द्रमाका दान कहा गया है। लाल वस्त्र, गेहूँ, तांबा और गुड़ यह मंगल ग्रहका दान बताया गया है। बुध और केतु दोनों ग्रह एक समान है इनके लिये मूंगादिकका दान कहा है। गुरुके लिये पीत वस्त्र, सुवर्ण और पीत वर्णकी दालका दान बतलाया हैं ॥१३६०-१३६१।। शुक्रका जैसा दान कहते हैं, अज्ञानी मूढ जन वैसा ही दान करते हैं। शनि और राहु श्याम वर्णके हैं इसलिये उन्हें लोहा, काले तिल, तेल, उड़द, हाथी और काले घोड़ोंसे युक्त काले रंगका रथ आदिका दान कहा है। इस प्रकार ग्रहोंकी शांतिके लिये मनचाहे दानोंका वर्णन करते हैं। वे इस बातका विचार नहीं करते कि नव ग्रह तो देवपदके धारी हैं, उनके कवलाहार ही नहीं होता तो फिर अनाज और गुड़ आदि किसलिये दिया जाता है ? इनसे उन्हें तृप्ति कैसे होती होगी ? ॥१३६२-१३६४॥ हाथी घोड़ाकी सवारी उनके निमित्त लोग डरके मारे देते हैं सो देवोंके तो सुन्दर रत्नजड़ित सुवर्णमय विमान हैं, वे तो पृथिवी पर पैर ही नहीं रखते फिर किस कारण उन्हें इनका दान दिया जाता है ? इसलिये शिवमतमें जो ग्रहोंका दान बतलाया गया है वह अनीतिपूर्ण है, उनका कथन विपरीत है ॥१३६५-१३६६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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