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________________ क्रियाकोष दोहा जिह निवाणको नीर भरि, घरमें आवै तांहि । छांणि जिवाणी भेजियो, वाहि निवाण जु मांहि ॥८२०॥ इह जलगालण विधि कही,जिन आगम अनुसार। कहिहौं कथा अणथमी, सुणियो भवि चित धार ॥८२१॥ अणथमी कथन दोहा घडी दोय दिन चढय जब, पछिलो घटिका दोय । इतने मध्य भोजन करै, निश्चै श्रावक सोय ॥८२२॥ सोरठा सुणिये श्रेणिक भूप, निसि भोजन त्यागी पुरुष । सुर सुख भुगति अनूप, अनुक्रमि सिव पावै सही ॥८२३॥ दिवस अस्त जब होय, ता पीछे भोजन करै। वे नर ऐसे होय, कहूं सुणो श्रेणिक नृपति ॥८२४॥ . नाराच छन्द उलूक काक औ बिलाव गृध्र पक्षि जानिये, बघेरु 'डोडु सर्प सूर सांवरो वखांनिये; हबंति गोहिरो अतीव, पापरूप थाइ है, निसी अहार दोषतै कुजोनिको लहाइये ॥८२५॥ हृदयमें जिन आज्ञाका पालन करो ॥८१७-८१९॥ जिस जलाशयसे पानी भर कर घरमें लाया गया हैं उसी जलाशयमें जीवानी भेजना चाहिये। कविवर किशनसिंह कहते हैं कि हमने यहाँ जिनागमके अनुसार जल छाननेकी विधि कही। अब अणथमी (अन्थऊ) की कथा कहते हैं सो हे भव्यजीवों! सुन कर हृदयमें धारण करो ।।८२०-८२१॥ अणथमी (अन्थऊ) कथन जब दो घड़ी दिन चढ़ आवे और पिछले समय दो घड़ी दिन बाकी रह जाय, इसके बीच जो भोजन करता है वही वास्तविक श्रावक है ॥८२२॥ गौतम स्वामी कहते हैं-हे श्रेणिक राजन् ! सुनो, जो मनुष्य रात्रिभोजनका त्यागी होता है वह स्वर्गके अनुपम सुख भोग कर क्रमसे मोक्षको प्राप्त होता है ॥८२३॥ दिन अस्त हो जानेके पश्चात् जो मनुष्य भोजन करते हैं वे क्या होते हैं यह सुनो ॥८२४॥ उलूक, काक, बिलाव, गृध्र पक्षी, बघेरु, डोडु सर्प, सूकर, सांवर, गोह आदि अत्यन्त पापरूप अवस्थाको प्राप्त होते हैं। तात्पर्य यह है कि रात्रिभोजनके दोषसे मनुष्य खोटी योनिको प्राप्त होता है ॥८२५॥ १ मोर न० स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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