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________________ क्रियाकोष मरयादा धरि वि आहार, चार्योंको करि परिहार । तियको सेवे दिन नांही, छट्ठी प्रतिमा सो धरांही ॥ ७५५।। प्रतिमा छहलौं जो जीव, समकित जुत धरै सदीव । तिह श्रावक जघन्य सुजाणी, भाषै इम जिनवर वाणी ॥७५६॥ श्रेणिक नृप प्रसन करांही, श्री गौतम गणधर पांही । ब्रह्मचर्यनाम प्रतिमाकौ, कहिये प्रभु कथन सु ताकौ ॥ ७५७ ॥ सुणियै अब श्रेणिक भूप, सप्तम प्रतिमा जु सरूप । मन वच क्रम धारि त्रिशुद्ध, नव विधि जो शील विशुद्ध || ७५८ ॥ निज पर वनिता सब जानी, आजनम पर्यंत तजानी । अब नवविधि शील सुणीजै, नित ही तसु हृदय गणीजै ||७५९|| मानुषणी सुरतिय जाणी, तिरयंचणी त्रितय वखाणी । ए तीनों चेतन वाम, मन वच क्रम तजि दुखधाम ॥७६०|| पाषाण काठ चित्राम, तजियै मन वच परिणाम | नव विधि ब्रह्मचर्य धरीजै, सप्तम प्रतिमा आचरीजै ॥७६१ ॥ प्रारंभमें दो घड़ी दिन चढ़ने पर और अंतमें दो घड़ी दिन बाकी रहने पर बीचमें जो भोजन करता है वह रात्रिभोजनत्याग नामक छठवीं प्रतिमाका धारी है ।। ७५४ || प्रतिज्ञापूर्वक जो रात्रि में चारों प्रकारके (अन्न, पानी, खाद्य, लेह्य) आहारका त्याग करता है तथा दिनमें स्त्रीका सेवन नहीं करता वह रात्रिभोजनत्याग अथवा दिवामैथुनत्याग नामक छठवीं प्रतिमाका धारी है ।।७५५।। जो जीव निरन्तर सम्यग्दर्शनसे युक्त होकर पहलीसे लेकर छठवीं प्रतिमा तकका पालन करते हैं उन्हें जघन्य श्रावक जानो, ऐसा जिनागममें कहा हैं || ७५६ || १२१ श्रेणिक राजाने श्री गौतम गणधरसे पुनः निवेदन किया कि हे प्रभो ! ब्रह्मचर्य प्रतिमाका स्वरूप कहिये ॥७५७॥ गौतम गणधर कहने लगे कि हे श्रेणिक राजन् ! सप्तम प्रतिमाका स्वरूप सुनो। मन वचन कायकी शुद्धिपूर्वक नौ प्रकारके शीलका पालन करना तथा निज और पर, दोनों प्रकारकी स्त्रियोंका जन्म पर्यन्तके लिये त्याग करना ब्रह्मचर्य प्रतिमा है । अब नौ प्रकारके शीलका वर्णन सुनो तथा निरन्तर हृदयमें उसका ध्यान रक्खो ।। ७५८- ७५९ ।। मानुषी, देवी और तिरश्ची इन तीन प्रकारकी चेतन और पाषाण, काठ तथा चित्रामकी अचेतन, इन चारों प्रकारकी स्त्रियोंका मन वचन काय तथा कृत कारित अनुमोदना इन नौ कोटियोंसे त्यांग करना नौ प्रकारका शील हैं । इस नव प्रकारके ब्रह्मचर्यको जो धारण करता है वही सप्तम प्रतिमाका आचरण करता है ।।७६० - ७६१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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