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________________ १०० श्री कवि किशनसिंह विरचित सुसुरादिक मित्रनके दिये, नृप आदिक जे बकसीस किये । मुखतॆ राखे है सो गहै, निज मरयादाको निरवहै॥६३९॥ पहरण पांवतणी पाहणी, तेऊ वस्त्रन मांहे गणी । नई पुराणी निज पर तणी, राखै सो पहरै 'इम भणी ॥६४०॥ अश्वादिक वाहण जे होई, जो असवारी मुकती जोई। काम पडै चढिहै तिह परी, और न काम नेम जो धरी ॥६४१॥ सोवेकी पालिक जो जाणि, सोडि तुलाई तकियो मांनि । जेतो सयन करणको साज, व्रत धरि संख्या धरि सिरताज ॥६४२॥ खाट पराई इक दुय चार, काम पडे बैठे सुविचार । बिनु राखै बैठे सो मही, यह जिन आगम सांची कही ॥६४३॥ गादी गाऊ तकियो जाण, चौका चौकी पाटा २आणि । सिंहासण आदिक हैं जिते, आसन मांहि कहावै तिते ॥६४४॥ गिलभ दुलीचा सतरंजणी, जाजम सादी रूई तणी । इनहि आदि बिछोणा होई, आसनमें गनि लीजै सोय ॥६४५॥ निज घरके अथवा पर ठाम, मुकते राखे जे जे धाम । तिन पर बैठे बाकी त्याग, जाकौ व्रत ऊपरि अनुराग ॥६४६॥ विषयमें भी मुखसे जैसा नियम ले रक्खा हो उसका निर्वाह करे॥६३६॥ पाँवकी पाँवड़ी आदिके विषयमें नई पुरानी अपनी तथा दूसरे आदिकी जैसा नियम लिया हो उस नियमकी रक्षा करते हुए पहिनना चाहिये ॥६४०॥ घोड़ा आदिक वाहनके विषयमें ऐसा नियम रक्खे कि काम पड़ेगा तो सवारी पर चढ़ेंगे ॥६४१॥ पलंग, सोड़, पल्ली तथा तकिया आदि जो कुछ शयनकी सामग्री है उनकी व्रती मनुष्यको संख्या निश्चित कर लेना चाहिये। दूसरे घर खाट आदि पर बैठनेका अवसर आवे तो ऐसा नियम रक्खे कि एक, दो, चार आदि स्थानों पर ही खाट पर बैलूंगा। यदि बैठनेका नियम नहीं रक्खा है तो जमीन पर बैठे ऐसा जिनागममें यथार्थ कहा है ॥६४२-६४३॥ गद्दी, तकिया, चौका, चौकी, पाटा, सिंहासन आदि जितने आसन हैं तथा गिलाफ, गलीचा, दरी, जाजम सादी अथवा रूई भरी आदि जो बिछौना हैं वे सब आसनमें शामिल है इनका प्रमाण करना चाहिये। अपने घर अथवा बाहर बैठनेके जो जो आसन हैं, व्रती मनुष्य नियमानुसार उन पर बैठे, बाकीका त्याग करे ॥६४४-६४६।। १ पग मणी २ वखाण स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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