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श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[प्रथम अधिकार
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अथाष्टविकल्पं ज्ञानोपयोगं प्रतिपादयति;
णाणं अट्ठवियप्पं मदिसुदिओही अणाणणाणाणि । मणपज्जवकेवलमवि पच्चक्खपरोक्खभेयं च ।। ५ ।। ज्ञानं अष्टविकल्पं मतिश्रुतावधयः अज्ञानज्ञानानि ।
मनःपर्ययः केवलं अपि प्रत्यक्षपरोक्षभेदं च ॥५॥ व्याख्या-“णाणं अट्ठवियप्पं" ज्ञानमष्टविकल्पं भवति । “मदिसुदिओही अणाणणाणाणि" अत्राष्टविकल्पमध्ये मतिश्रुतावधयो मिथ्यात्वोदयवशाद्विपरीताभिनिवेशरूपाण्यज्ञानानि भवन्ति, तान्येव शुद्धात्मादितत्त्व विषये विपरीताभिनिवेशरहितत्वेन सम्यग्दृष्टिजीवस्य सम्यग्ज्ञानानि भवन्ति । "मणपज्जवकेवलमवि" मनःपर्ययज्ञानं केवलज्ञानमप्येवमष्टविधं ज्ञानं भवति, “पच्चक्खपरोक्खभेयं च" प्रत्यक्षपरोक्षभेदं च अवधिमन:पर्ययद्वयमेकदेशप्रत्यक्षं, विभङ्गावधिरपि देशप्रत्यक्ष, केवलज्ञानं सकलप्रत्यक्ष शेषचतुष्टयं परोक्षमिति । इतो विस्तरः-आत्मा हि निश्चयनयेन सकलविमलाखण्डैकप्रत्यक्षप्रतिभासमयकेवलज्ञानरूपस्तावत् । स च व्यवहारेणानादिकर्मबन्धप्रच्छादितः सन्मतिज्ञानावरणीयक्षयोपशमाद्वीर्यान्तरायक्षयोपशमाच्च बहिरङ्गपञ्चेन्द्रियमनोऽवलम्बनाच्च मूर्तामूत्तं वस्त्वेकदेशेन विकल्पाकारेण परोक्षरूपेण सांव्यवहारिकप्रत्यक्षरूपेण वा यज्जानाति तत्क्षायोपवरणकर्मके क्षयसे उत्पन्न और ग्रहण करने योग्य केवलदर्शन जानना चाहिये ।। ४ ।।
अब आठ विकल्प (भेद) सहित जो ज्ञानोपयोग है, उसका कथन करते हैं;
गाथाभावार्थ-कुमति, कुश्रुत, कुअवधि, मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल ऐसे आठ प्रकारका ज्ञान है । इनमें कुअवधि, अवधि, मनःपर्यय तथा केवल ये चार प्रत्यक्ष हैं, और शेष चार परोक्ष हैं ।। ५ ॥
व्याख्यार्थ-"णाणं अवियप्पं" ज्ञान आठ प्रकारका है। "मदिसुदिओही अणाणणाणाणि" उन आठ प्रकारके भेदोंके मध्य में मति, श्रुत, तथा अवधि ये तीन मिथ्यात्वके उदयके वशसे विपरीत अभिनिवेशरूप अज्ञान होते हैं ( इसीसे कुमति, कुश्रुत, तथा कुअवधि [ विभंगावधि ) ये इनके नाम हैं ) तथा वे ही मति, श्रुत, तथा अवधिज्ञान शुद्ध आत्मा आदि तत्त्वके विषयमे विपरीत अभिनिवेशके अभावके कारण सम्यग्दृष्टि जीवके सम्यग्ज्ञान हो जाते हैं, इस रीतिसे मति आदि तीन अज्ञान और तीन ज्ञान उभयस्वरूप होनेसे ज्ञानके ६ भेद हुए) तथा "मणपज्जवकेवलमवि" मनःपर्यय और केवलज्ञान ये दोनों मिलकर ज्ञानके आठ भेद हुए। "पच्चक्खपरोक्खभेयं च" इन आठोंमें अवधि और मनःपर्यय ये दोनों तथा विभंगावधि तो देशप्रत्यक्ष हैं, और केवलज्ञान सकलप्रत्यक्ष है, शेष (बाकीके) कुमति, कुश्रुत, मति और श्रुत ये चार परोक्ष हैं । अब यहाँसे विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं । जैसे-आत्मा निश्चयनयसे सम्पूर्णरूपसे विमल तथा अखण्ड जो एक प्रत्यक्षज्ञानस्वरूप केवलज्ञान है उस ज्ञानस्वरूप है, और वही आत्मा व्यवहारनयसे
अनादिकालके कर्मबन्धसे आच्छादित होकर, मतिज्ञानके आवरणके क्षयोपशमसे तथा वीर्यान्तराय• के क्षयोपशमसे और बहिरंग पाँच इन्द्रिय तथा मनके अवलम्बनसे मूर्त और अमूर्त्तवस्तुको एक देशसे विकल्पाकार परोक्षरूपसे अथवा सांव्यवहारिक प्रत्यक्षरूपसे जो जानता है वह क्षायोपशमिक
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