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________________ प्रियदर्शना डाकू के चंगुल में • ककककककककककककककककककककककककककककककक Jain Education International ७७ सहित बन्धुदत्त को अपने घर ले गया और वहीं ठहरा कर भोजनादि से उनका बहुत सत्कार किया । प्रसंगोपात अमितगति से बन्धुदत्त का परिचय पा कर जिनदत्त प्रभावित हुआ और अपनी प्रिय पुत्री के योग्य वर जान कर प्रियदर्शना का लग्न बन्धुदत्त के साथ कर दिया । अमितगति आदि स्वस्थान लौट गये और बन्धुदत्त प्रियदर्शना के साथ वहीं रह कर सुखपूर्वक जीवन बिताने लगा । प्रियदर्शना डाकू के चंगुल में कालान्तर में प्रियदर्शना गर्भवती हुई। सिंह स्वप्न के साथ एक उत्तम जीव उसके गर्भ में आयो । बन्धुदत्त की इच्छा माता-पिता से मिलने की हुई। उसने ससुर से कहा । जिनदत्त सेठ ने बहुत-सा धन, बहुमूल्य आभूषण और अन्य वस्तुएँ तथा दास-दासी दे कर पुत्री को बिदा किया । बन्धुदत्त ने अपने प्रस्थान की उद्घोषणा करवाई, जिससे कई लोग उसके साथ चलने को तैयार हो गए । सार्थ ने प्रस्थान किया । चलते-चलते सार्थ एक विशाल अटवी में पहुँचा । उस भयानक अटवी में तीन दिन चलने के बाद एक सरोवर के तीर पर पड़ाव लगा कर रात्रि-निर्गमन करने लगे। उस रात्रि में ही चंडसेन नाम के डाकुओं के सरदार ने अपनी सेना के साथ सार्थ पर आक्रमण किया और सारा धन माल लूट लिया । सार्थ के सभी लोग भाग गए। किंतु प्रियदर्शना और उसकी दासी चोरों द्वारा पकड़ ली गई। जब लूटपाट के बाद डाकू-दल स्वस्थान आया, तो प्रियदर्शना का उदास और म्लान मुख देख कर चंडसेन को पश्चाताप हुआ । उसके मन में हुआ कि इसे अपने साथी के पास पहुँचा देनी चाहिये । उसने प्रियदर्शना की दासी से उसका परिचय पूछा। दासी ने उसके पिता सेठ जिनदत्त का परिचय दिया, जिसे सुनते ही चंडसेन के हृदय को धक्का लगा । वह अवाक् रह गया । कुछ समय बाद उसने निःश्वास छोड़ते हुए कहा - " पुत्री ! मैंने अनर्थ कर डाला । जिनदास सेठ तो मेरे उपकारी है । उन्होंने मुझे राजा के चंगुल से छुड़ाया था। एक बार मैं मद्य में बेभान हो गया था, तब राजा के सुभटों ने मुझे पकड़ लिया था और राजा ने मृत्युदंड सुना दिया था । परन्तु जिनदास सेठ ने मुझे जीवन-दान दे कर छुड़ाया था । मुझ पापी ने अनजान में उन्हीं की पुत्री को लूटा । परन्तु पुत्री ! तू यहाँ अपने पीहर की तरह रह । मैं तेरे पति की खोज कर के तुझे उससे मिलाऊँगा ।" डाकू सरदार अब बन्धुदत्त की खोज करने लगा । For Private & Personal Use Only कककक www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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