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________________ W क्रमांक विषय पृष्ठ क्रमांक विषय पृष्ठ ४१ कमठ का जन्म ५२ | ५२ बन्धुदत्त का चरित्र ४२ भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म ५२ | ५३ प्रियदर्शना डाकू के चंगुल में ४३ पार्श्वकुमार समरांगण में ५३ | ५४ बन्धुदत्त आत्मघात करने को तत्पर ४४ यवनराज ने क्षमा मांगी ५७ / ५५ मामा-भानेज कारागृह में ४५ राजकुमारी प्रभावती के साथ लग्न ५८ | ५६ सन्यासी की पाप-कथा ४६ कमठ से वाद और नाग का उद्धार ६० | ५७ कारागृह से मुक्ति ४७ पार्श्वनाथ का संसार त्याग ६१ | ५८ बलिवेदी पर प्रिया मिलन और शुभोदय ८२ ४८ कमठ के जीव मेघमाली का घोर उपसर्ग ६२ | ५६ बन्धुदत्त का पूर्वभव और भव-मुक्ति का ४९ धरणेन्द्र का आगमन xx उपद्रव मिटा ६३ | निर्णय ५० धर्म-देशना ६५ । ६० सोमिल उपासक बन गया श्रावक व्रत | ६१ काली आर्यिका विराधक होकर देवी हुई ८८ ५. सागरदत्त की स्त्री-विरक्ति और लग्न ७३ । ६२ प्रभु का निर्वाण ८८३ भगवान् महावीरस्वामीजी पृष्ठ क्रमांक विषय पृष्ठ क्रमांक विषय ६३ नयसार का भव ६४ भरत-पुत्र मरीचि ६५ भावी तीर्थंकर ६६ जाति-मद से नीच गोत्र का बन्ध । ६७ मरीचि ने नया पंथ चलाया ६८ त्रिपृष्ठ वासुदेव भव ६९ अश्वग्रीव का होने वाला शत्रु ७० सिंह-घात ७१ त्रिपृष्ठ कुमार के लग्न ७२ पत्नी की माँग ७३ प्रथम पराजय ७४ मंत्री का सत्परामर्श ७५ अपशकुन ११७ ७६ अश्वग्रीव का भयंकर युद्ध और मुत्यु ११९ ७७ त्रिपृष्ठ की क्रूरता और मृत्यु ७८ चक्रवर्ती पद ७९ नन्दनमुनि की आराधना और जिन १०५ नामकर्म का बन्ध ११० १२८ ११२ ८६देवानन्दा की कुक्षि में अवतरण ८१ संहरण और त्रिशला की कुक्षि में स्थापन १३१ ११५ | ८२ देवानन्दा को शोक xx त्रिशला को हर्ष १३३ ११४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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