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________________ तीर्थकर चरित्र भाग ३ कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककन ६२ "भगवान् ! धर्म-तीर्थ प्रवर्तन करो । भव्यजीवों का संसार से उद्धार करने का समय आ रहा है । अब प्रवजित होने की तैयारी करें प्रभु !" लोकान्तिक देव, अपने आचार के अनुसार भगवान् से निवेदन कर के लौट गये । पौष-कृष्णा एकादशी के दिन विशाखा नक्षत्र में, तेले के तप से, तीन सौ मनुष्यों के साथ प्रभु ने, देवेन्दों नरेन्द्रों और विशाल देव-देवियों और नर-नारियों की उपस्थिति में निग्रंथप्रव्रज्या स्वीकार की। प्रव्रजित होते ही भगवान् को मनःपर्यव ज्ञान उत्पन्न हो गया । दीक्षा ग्रहण करने के दूसरे दिन आश्रमपद उद्यान से विहार कर के भगवान् कोपटक नामक गांव में पधारे और धन्य नामक गृहस्थ के यहाँ परमान्न से तेले के तप का पारणा किया । देवों ने वहाँ पंचदिव्य की वर्षा की और धन्य के दान की महिमा की। भगवान् वहाँ से विहार कर गये। कमठ के जीव मेघमाली का घोर उपसर्ग भगवान् साधनाकाल में विचरते हुए एक वन में पधारे और किसी तापस के आश्रम के निकट एक कुएँ पर, वटवृक्ष के नीचे ध्यानस्थ खड़े रहे । उस समय कमठ तापस के जीव मेघमाली देव ने अपने पूर्वभव के शत्रु पार्श्वकुमार को ध्यानस्थ देखा । बह क्रुद्ध हो गया । पूर्वभवों की वैर-परम्परा पुनः भड़की । वह निग्रंथ महात्मा पर उपद्रव करने पर तत्पर हुआ और भगवान् के समीप आया । सर्व प्रथम उसने विकराल केसरी-सिंहों की विकुर्वणा की जो अपनी भयंकर गर्जना, पूंछ से भूमिस्फोट और रक्तनेत्रों से चिनगारियाँ छोड़ते हुए चारों ओर से एक साथ टूट पड़ते हुए दिखाई दिये । परन्तु प्रभु तो अपनी ध्यानमग्नता में अडिग, पूर्णतया शान्त और निर्भीक रहे । मेघमाली की यह माया व्यर्थ गई । सिंहों का वह समूह पलायन कर गया। अपना प्रथम वार व्यर्थ होने के बाद मेघमाली ने दूसरा वार किया । उसने मदोन्मत्त गजसेना बनाई, जो सूंड उठाये चिंघाड़ती हुई चारों ओर से प्रभु पर आक्रमण करने के लिये धंसी आ रही थी। परन्तु प्रभु तो पर्वत के समान अडोल शान्त और निर्विकार खड़े रहे । वह गजसेना भी निष्फलता लिये हुए अन्तर्धान हो गई। इसके बाद तीसरा आक्रमण भालुओं का झुण्ड बना कर किया गया। चौथा भयंकर चोतों के झुण्ड, से, पाँचवाँ बिच्छुओं से, छठा भयंकर सौ से और सातवाँ विकराल बेतालों के भयंकर रूपों द्वारा उपद्रव करवाया। परन्तु वे सभी उपद्रव निष्फल रहे । प्रभु का अटूट धैर्य एवं शान्त समाधि वे नहीं तोड़ सके । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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