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________________ नागकुमारी को दण्ड xx नागकुमार से पुरस्कृत ३५ •••••••••••• ၂၀ ၉၉၉၉၉၉၉ ဖ၆၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀ भोजन करने लगा। उसके मन में पुनः राज-भोज प्राप्त करने की इच्छा बनी रही और वह इस इच्छा को मन में लिये हुए ही मर गया। क्योंकि पुनः ऐसा अवसर कभी आया ही नहीं। नागकुमारी को दण्ड + + नागकुमार से पुरस्कृत किसी यवन राजा ने चक्रवर्ती सम्राट के लिए एक श्रेष्ठ अश्व भेंट में भेजा। उस घोड़े की उत्तमता देख कर सम्राट का मन, उस पर आरूढ़ हो कर वन में घूमने का हुआ। वे घोड़े पर चढ कर चल दिये। उनके साथ अंगरक्षक भी थे। कुछ अश्वारोही सैनिक और कुछ गजारूढ़ एवं रथो भी पीछे-पीछे हो लिये। अश्व की गति का वेग देखने के लिए महाराज ने उसे अपनी जंघाओं में दबाया और चाबुक मारा । अश्व वायुवेग से दौड़ने लगा । अंगरक्षक और सेना पीछे रह गई । महाराज ने अश्व की रास खिंची, किन्तु वह नहीं रुका और एक भयानक अटवी में जा कर अत्यन्त थक जाने के कारण खड़ा रहा। महाराज को भी जोर की प्यास लग रही थी । घोड़े पर से उतरते ही वे पानी की खोज करने लगे । उन्होंने एक स्वच्छ जलाशय देखा । फिर घोड़े पर से जीन उतारा, उसे पानी पिलाया, फिर उन्होंने जल पिया और स्नान भी किया। इसके बाद वे उस रमणीय स्थान पर इधर-उधर घूम कर मनोरञ्जन करने लगे। हठात् उसकी दृष्टि एक अत्यन्त सुन्दर कमनीय ललना पर पड़ी। भयंकर वन में एक सुन्दर रमणी को देख कर वे आश्चर्य में पड़ गए । वे उसी को देखते रहे । इतने में उसके निकट रहे हुए वृक्ष पर से एक गोनस जाति का नाग उतरा । उस नाग-कुमारी ने वैक्रिय से अपना रूप पलट कर नागिन का रूप धारण किया और उस नाग से लिपट गई। उनके इस व्यभिचार को देख कर नरेन्द्र क्रोधित हो गए । वे स्वयं भोगी थे, परन्तु अनीति उन्हें असह्य हो जाती थी। उन्होंने चाबुक उठाया और उनके पास पहुँच कर दोनों को पीटने लगे। उन्हें भरपूर दण्ड दे कर छोड़ा। नरेन्द्र ने सोचा--'वृक्ष से उतरने वाला भी कोई व्यंतर जाति का देव होगा, जो गोनस नाग बन कर इसके साथ जार-कर्म करता है।' वे सोच ही रहे थे कि उनकी खोज करती हुईं सेना वहाँ आ पहुँची । अपनी सेना के साथ नरेश स्वस्थान आये । ___ वह नागदेवी रोती हुई अपने आवास में लौटी और पति से कहने लगी;-- "स्वामी ! मैं अपनी सखियों के साथ यक्षिणी के पास जाती हुई, भूतरमण उद्यान में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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