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उत्सर्पिणीकाल का स्वरूप
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वनस्पतयों में अपने योग्य पाँच प्रकार के रस की वृद्धि होगी '
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इन वृष्टियों के पश्चात् पृथ्वी का वातावरण शान्त हो जायगा, चारों और हरियालो दिखाई देगी । ऐसी शान्त सुखप्रद एवं उत्साहवर्द्धक स्थिति का प्रभ व उन विलवासी मनुष्यों पर होगा । वे बिल में से बाहर निकल आवेगं । चारों ओर हरियाली और सुखद प्रकृति देख कर हर्ष - विभोर होंगे। उनके हृदय में शुभभाव उत्पन्न होंगे । वे सभी एकत्रित होकर प्रसन्नता व्यक्त करेंगे । और सब मिलकर यह निश्चय करेंगे कि अब हम मांस भक्षण नहीं करेंगे । यदि कोई मनुष्य मांस भक्षण करेगा, तो हम उससे सम्बन्ध नहीं रखेंगें । हमारे खाने के लिए प्रकृति से उत्पन्न वनस्पति बहुत है । वे नीति- न्यायपूर्ण व्यवस्था करेंगे ।
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इनकी सामाजिक व्यवस्था करने के लिये आरक के प्रांत भाग में क्रमश: सात कुलकर होगे - १ विमलवाहन २ सुदाम ३ संगम ४ सुपार्श्व ५ दत्त ६ सुमुख और ७ संमुचि । प्रथम कुलपति जातिस्मरण से जान कर ग्राम-नगरादि की रचना करेगा, पशुओं का पालन करे-कराएगा, शिल्प, वाणिज्य, लेखन सिखाएगा। इस समय अग्नि उत्पन्न होगी, जिससे भोजन आदि पकाना सिखावेगा । इस काल के मनुष्यों के संहनन संस्थान आयु आदि में वृद्धि होगी । उत्कृष्ट मो वर्ष से अधिक आयु वाले होंगे और आयु पूर्ण कर अपने कर्मानुसार चारों गतियों में उत्पन्न होंगे, परन्तु मुक्ति नहीं पा सकेंगे ।
'दुःषम सुषमा' नामक तीमरा आरा बयालीस हजार वर्ष कम एक कोटा -कोटि सागरोपम प्रमाण का ( अवसर्पिणी काल के चौथे आरे जितना ) होगा । इस आरक के ८९ पक्ष (तीन वर्ष साड़ आठ मास) व्यतीत होने पर 'द्वार' नामक नगर के 'संमुचि ' नाम के सातवें कुलकर राजा की रानी भद्रा देवी की कुक्षि से 'श्रेणिक' राजा का जीव, नारकी से निकल कर पुत्रपने उत्पन्न होगा। गर्भ जन्मादि महोत्सव आयु आदि मेरे (भगवान् महावीर प्रभु के ) समान होंगे । 'महापद्म' नाम के वे प्रथम तीर्थंकर होंगे। उनके पश्चात् प्रनिल म ( उलट क्रम) से बाईस ( कुल तेईस ) तीर्थंकर होंग । ग्यारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव, नो प्रतिवासुदेव होंगे ।
'सुषम दुःषम' नामक चौथा आरा दो कोड़ाकोड़ी सागरोपम प्रमाण होगा ! इसमें चौबीसवें तीर्थंकर और बारहवें चक्रवर्ती होंगे । इस आरक का एक करोड़ पूर्व से कुछ
* इन वृष्टियों के मध्य में दो सप्ताह का उधाड़ होने का कह कर जो लोग ४९ दिन का सम्वत्सरी का मेल मिलाने का प्रयत्न करते हैं, उसके लिये सूत्र ही नहीं, प्राचीन ग्रन्थ का भी कोई आधार दिखाई नहीं देता, केवल काल प्रभाव एवं पक्ष-व्यामोह ही लगता है ।
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