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तीर्थंकर चरित्र - - भाग ३
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गणधर भगवान् गौतम स्वामी राजमहालय में आये । मृगावती देवी गणधर भगवान् को देख कर प्रसन्न हुई, आसन से उठ कर सामने आई और वन्दना नमस्कार कर के आगमन का प्रयोजन पूछा । गणधर महाराज ने कहा--" मैं तुम्हारा पुत्र देखने आया हूँ ।' अपने चार पुत्रों को वस्त्राभूषण से अलंकृत कर महारानी गणधर भगवान् के समक्ष लाई । महर्षि ने उन्हें देख कर कहा
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"नहीं, देवानुप्रिये । में तुम्हारे इन पुत्रों को देखने नहीं आया हूँ । तुम्हारा ज्येष्ठ पुत्र जो जन्मान्ध-बधिर आदि है, जिसे तुमने गुप्त रूप से भू-घर में रखा है, उसे देखने आया हूँ " - गोतम भगवान् ने कहा ।
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'महात्मन् ! ऐसा कौन ज्ञानी, तपस्वी है, जिसने मेरा यह रहस्य जान लिया -- महारानी को भेद खुलने का आश्चर्य हो रहा था ।
-- “ देवानुप्रिये ! मेरे धर्मगुरु धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर प्रभु परम ज्ञानी सर्वज्ञ - सर्वदर्शी हैं। वे भूत भविष्य और वर्तमान के सभी भावों को पूर्णरूप से जानते देखते हैं। उसने सुन कर मैं उसे देखने यहाँ आया हूँ" -- गौतम स्वामी ने कहा ।
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'भगवान् ! आप थोड़ी देर यहाँ ठहरिये । में अभी आपको मेरा ज्येष्ठ पुत्र दिखानी
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' - - कह कर महारानी गई और शीघ्र ही भोजनादि से लदो एक गाड़ी (ठेका) लिये हुए आई और गौतम स्वामी से बोली-- " आइये मेरे पीछे ।" गौतम स्वामी महारानी के पीछे चलने लगे । भूमिघर-द्वार के निकट पहुँच कर महारानी ने चार पट वाले वस्त्र से मुँह-नाक बाँधा और गौतम स्वामी से कहा--" भगवन् ! आप मुँहपत्ती से मुँह बाँध लीजिये, दुर्गंध आएगी / । तत्पश्चात् रानी ने मुँह फिराकर भूघर का द्वार खोला । द्वार खुलते ही दुर्गंधमय वायु निक्ली । वह गंध, मरे और सड़े हुए सर्प, गाय आदि पशुओं की अनिष्टतर दुर्गंध जैसी थी । मृगावती देवी के पीछे गौतम स्वामी ने भी भूमि घर में प्रवेश किया और उस पत्र को देखा ।
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† मुँह बाँधने का कारण दुर्गन्ध से बचने का है। इसके लिये मुँह और नाक दोनों बाँधे जाते हैं । गन्ध के पुद्गल नासिका के सिवाय मुंह में प्रवेश कर पेट में भी पहुँच जाते हैं। इससे बचाव करने के लिए डॉक्टर भी मुँह और नाक पर पट्टी बाँधते हैं। इस सम्बंधी मूलपाठ में आगे लिखा है कि-" तएवं सा मियादेवी परंमुही भूमीधरस्स दुवारं विहाडेंति । तएणं गंधो णिगच्छइ ।” अर्थात् मृगावत देवी ने मुँह फिराकर भूमिघर का द्वार खोला और उसमें से गन्ध निकली। वस्तुतः इस दुर्गन्ध से बचने के लिये मृगावती ने मुँह बाँधने का कहा था, जिसमें नासिका तो मुख्यतः बाँधनी ही थी । नासिका, कान और आँखे मुँह पर ही है । इसलिए मुँह कहने से सब का ग्रहण हो गया ।
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