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तीर्थंकर चरित्र भाग ३
की आय के चार विभाग करूँगा। इनमें से एक विभाग सेना आदि सुरक्षा के साधनो के लिए दूंगा, दूसरा राज्य-भंडार में प्रजा के हितार्थ तीसरा अंतःपुर के लिए और चौथा भाग दानशाला के लिए रखंगा, जहाँ पथिकों भिक्ष ओं एवं याचकों के लिये भोजन की व्यवस्था होगी। वह भोजन राज्य की ओर से दिया जाता रहेगा।"
प्रदेशी स्वस्थान गया और दूसरे ही दिन उसने उपरोक्त प्रकार से राज्य के चार विभाग कर के राजाज्ञा प्रसारित कर दी।
प्रदेशी नरेश जीव, अजीव आदि तत्त्वों के ज्ञाता श्रमणोपासक हो गए । अब उनकी रुचि न तो राज्य में रही. न रानियों और परिवार में । वे इन सब की उपेक्षा करने लगे और धर्मसाधना में रत रहने लगे ।
महारानी की घातक योजना पुत्र ने ठुकराई
राजा को मिष्ठ और राज्य-परिवार तथा भोग से विमुख देख कर महारानी सूर्यकांता के स्वार्थ को धक्का लगा। पति अब उसके लिये उपयोगी नहीं रहा था। उसने पति को विष प्रयोग से मार कर अपने पुत्र सूर्यकान्तकुमार को राजा बनाने और नाममात्र का राजा रख कर स्वयं सत्ताधारिनी बनने का संकल्प किया। उसने एकांत में पुत्र के सामने योजना रखी, परन्तु पुत्र सहमत नहीं हुआ। पुत्र को माता के विचार नहीं सुहाये। वह बिना उत्तर दिये ही लौट गया। महारानी घबराई । उसे लगा कि कहीं पुत्र, पिता के सामने मेरा रहस्य खोल दे, तो मेरी क्या दशा हो ? उसने स्वयं ने पति की हत्या करने का संकल्प किया।
प्राण-प्रिया ने प्राण लिये + राजा अडिग रहा
एक दिन रानी ने राजा को भोजन एवं पानी आदि में विष मिला कर खिला-पिला दिया । विष का प्रभाव होने लगा। राजा समझ गया । वह तत्काल पौषधशाला में आया और अंतिम आराधना करने में संलग्न हो गया। राजा ने समझ लिया कि रानी ने मुझे
: मूल में बेले की तपस्या का पारणा होने का उल्लेख नहीं है । टीकाकार ने “अंतरे जाणइ" शब्द के विवेचन में बेले का पारणा होना लिखा है।
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