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________________ ४०६ कककककककककककककककककककव बायल तो वरुण भी हो गया था । उसने रण-क्षेत्र से अपना रथ हटाया और एकांत स्थान पर रोका । फिर रथ पर से उतरा । रथ से घोड़े खोले और मुक्त कर दिये । वरुण ने भूमि का प्रमार्जन किया, दर्भ का संथारा बिछाया और उस पर आसीन होकर बोला तीथंकर चरित्र - भाग ३ pp ***Fees 1 eh behehhepher 46 'नमस्कार हो मोक्ष प्राप्त अरिहंत भगवंतों को, नमस्कार हो मेरे धर्मगुरु धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को । भगवन् ! आप वहाँ रहे हुए मुझे देख रहे हैं । मैने आपसे स्थूल प्राणातिपात से स्थूल परिग्रह पर्यंत त्याग किया था। अब में प्राणातिपातादि पापों का सर्वथा जीवनपर्यंत त्याग करता हूँ और अशन-पानादि तथा इस शरीर का भी त्याग करता हूँ ।" वरुण ने अपना कवच उतारा, शस्त्र उतारे और छाती में धँसे हुए बाण को निकाला। फिर आलोचना-प्रतिक्रमण करके समाधीपूर्वक मृत्यु को प्राप्त हुआ । वरुण का जीव प्रथम स्वर्ग के अरुणाभ विमान में देव हुआ। वहाँ का आयुष्य पूर्ण कर के महाविदेह में जन्म लेगा और संयम-तप का पालन कर मुक्ति प्राप्त करेगा । लगा । वह भी घायल हो गया । वरुण का बचपन का एक मित्र असम्यगदृष्टि था। वरुण के साथ उसकी अक्षुण्ण एवं दृढ़ मित्रता थो | जब उसे ज्ञात हुआ कि वरुण युद्ध में गया है, तो वह भी शस्त्रसज्ज हो कर युद्ध में आया और वरुण के निकट ही लड़ने उसने मित्र वरुण को घायल दना में युद्ध भूमि से निकलते देखा, तो वह भी उसके पीछेपीछे निकल चला और उनके निकट ही अपने रथ से उतर कर घोड़े छोड़ दिये । वह भी घास विछा कर बैठा । कवत्र शस्त्र खोले, बाण निकाल कर उसने कहा जो व्रत नियम त्याग शील मेरे मित्र ने किये हैं, वे मुझे भी होवें ।" समाधी भाव में मृत्यु पा कर वह उत्तम कुल में मनुष्य जन्म पाया। वह भी महाविदेह में मनुष्य हो कर मोक्ष प्राप्त करेगा । वरुण एक प्रख्यात योद्धा और प्रचण्ड सेनापति था। उसके प्रभाव से ही शत्रु सेना का साहस टूट जाता था । उसकी मृत्यु जान कर कूणिक की सेना का साहस बढ़ा | वह द्विगुण साहस से जूझने लगी । चटक- सेना अपने सेनापति का मरण जान कर क्रोधाभिभूत हो कर लड़ने लगा । वीरशिरोमणि चेटक नरेश भी अपने अमोघ बाणों से शत्रु के साथ जूझने लगे। यदि देवेन्द्र कुणिक के रक्षक नहीं होते, तो चेटक नरेश के अमोघ बाण से वह समाप्त हो जाता। उधर मूल के प्रहार से चेटक की सेना का विनाश हो रहा था। चेटक नरेश के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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