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________________ वरुण और उमका बाल-मित्र ४०५ लेकर आ डटे । इस बार कूणिक अपने 'भूतानन्द' नामक हस्ति-गज पर आसीन हुआ। देवेन्द्र शक पूर्व की भाँति वज्रमय कवच से कणिक को सुरक्षित व र आगे रहा और पंछ चमरेन्द्र ने सुरक्षा की। इस युद्ध में एक मानवेन्द्र, दूसरा देवेन्द्र और तीसरा असुरेन्द्र एक हाथी पर रहे और विपक्ष में चेटक नरेश अठारह गणराजा ओर विशाल सेना थी। वरुण और उसका बाल मित्र वैशाली में नाग सारथि का पौत्र वरुण + रहता था । वह ऋद्धि सम्पन्न उच्चाधिकार प्राप्त और महान् शक्तिशाली था। वह जिनेश्वर भगवन्त का परमोपासक एवं तत्त्वज्ञ था। श्रमणोपासक के व्रतों का पालन करने के साथ ही बेले-बेले की तपस्या भी करता रहता था। चेटक-कणिक युद्ध के चलते वरुण को भी महाराजा चेटक की ओर से युद्ध में भाग लेने का आमन्त्रण मिला । उस दिन उस के बले की तपस्या थी। उसने बले की तपस्या का पारणा नहीं किया और तपस्या में वद्धि कर के तेला कर लिया। तत्पश्चात उसने स्नान किया । वस्त्रालकार और अस्त्रशस्त्र से सज्ज होकर अपनी सेना के साथ चला और रथमूसल सग्राम में सम्मिलित हुआ। वरुण के यह नियम था कि जो व्यक्ति उसका अपराधी होगा, उसी पर वह प्रहार करेगा-उसी पर वह शस्त्र चलावेगा, निरपराधी पर नहीं। उस दिन वही सेनापति * हुआ। कणिक का सेनापति उसके समक्ष उपस्थित हुआ और ललकारते हुए कहा-“हे महाभुज ! चला तेरा शस्त्र । मैं सावधान हूँ।" -"नहीं मित्र ! में श्रमणोपासक हूँ । जब तक मुझ पर कोई प्रहार नहीं करे, तब तक मैं किसी पर शस्त्र नहीं चलाता । तुम्हारा वार होने के बाद ही में प्रहार करूँगा" -वरुण ने कहा। शत्रु ने बाण मारा जो वरुण की छाती में धंस गया, परन्तु वरुण घबराया नहीं। वह क्रोधातुर हुआ और कानपर्यन्त धनुष खिच कर बाण मारा, जिससे क्षत्रु क्षत-विक्षत हो कर मृत्यु को प्राप्त हुआ। + यहाँ यह संभावना लगती है कि-राजगृह की सुलसा श्राविका का पति नाग सारथि था। उसके पुत्र महाराजा श्रेणिक के अंगरक्षक थे और चिल्लना-हरण के समय मारे गये थे। उन नाग-पुत्रों में से किसी का पुत्र (नाग का पौत्र) यह बरुण हो और महाराजा श्रेणिक की मृत्यु के पश्चात या पूर्व ही वह राजगह छोड़ कर विशाला चला गया हो ? * सेनापति होने का उल्लेख त्रि. श. पु. च. में है। Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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