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तीर्थंकर चरित्र - - भाग ३
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- " लगता है कि संयम और तप की साधना से थक कर पुनः राज्य प्राप्त करने आ रहे हों " - मन्त्री ने कहा ।
- " राज्य तो उन्हीं का दिया हुआ है । वे लेवें तो दुःख किस बात का ? "
- " नहीं महाराज ! राज्य तो आपके पुण्य प्रताप से ही आप को मिला है । इसकी रक्षा करना आपका कर्त्तव्य है । प्राप्त राज्य को सहज ही छोड़ देना, अयोग्यता की निशानी है" - मन्त्री ने रंग चढ़ाया ।
- " अब में क्या करूँ " - राजा ने मन्त्री से पूछा ।
-" इस कंटक को हटाना होगा और इसका सहज उपाय किया जायगा ।” मन्त्री ने किसी पशुपालिका को लोभ दे कर महात्मा को विषमिश्रित दही देने का प्रबन्ध किया । किसी भक्त देव ने महर्षि से कहा " विष मिला हुआ दही आपको दिया जायगा । आप नहीं लेवें" । महात्मा ने दही लेना बंद कर दिया । इससे रोग बढ़ा, तो महात्मा ने पुन: दही लेना चालू किया । तीन बार दही में मिले हुए विष का देव ने हरण किया, परन्तु भवितव्यता वश चौथी बार देव का उपयोग अन्यत्र रहा और महात्मा ने विष मिला हुआ दही खा लिया । विष प्रयोग जान कर महात्मा ने संथारा कर लिया और एक मास के अनशन में केवलज्ञान प्राप्त कर मुक्त हो गए ।
कपिल केवली चरित्र
शम्बी नगरी में जितशत्रु राजा का पुरोहित 'काश्यप' ब्राह्मण था । उसकी 'यशा' पत्नी से 'कपिल' नामक पुत्र का जन्म हुआ था । काश्यप महाविद्वान था । वह राज्यमान्य एवं प्रतिष्ठित था । कपिल बालक था, तभी उसके पिता काश्यप की मृत्यु हो गई । काश्यप के मरते ही राज्य की ओर से मिलता हुआ सम्मान बन्द हो गया और उसके स्थान पर अन्य विद्वान की नियुक्ति हो गई । जब अन्य विद्वान सम्मान सहित अश्वारूढ़ हो राज्य प्रासाद जा रहा था और काश्यप के घर के आगे से निकला, तो उसे देख कर काश्यप की पत्नी को आघात लगा । क्योंकि इसके पूर्व यही प्रतिष्ठा उसके दिवंगत पति को प्राप्त थी । आज यह दूसरों को प्राप्त है । इस अभाव ने उसे शोकाकुल कर दिया । वह रोने लगी । उसे रोते देख कर कपिल भी रोने लगा । कपिल ने माता के रुदन का कारण पूछा । माता ने कहा- "जो सम्मान और प्रतिष्ठा तेरे पिता को प्राप्त थी । और
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