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________________ तीर्थङ्कर चरित्र भाग ३ + एकबार उदयननरेश ने पौषधशाला में पोषधयुक्त धर्मजागरण करते एवं संसार की असारता का चिन्तन करते हुए संकल्प किया कि वह ग्राम-नगर धन्य है, जहाँ देवाधिदेव श्रमण भगवान महावीर स्वामी विचर रहे हैं । वहाँ के राजा-सामन्तादि और निवासी भी धन्य हैं, जो भगदान को वन्दना नमस्कार कर के पर्युपासना करते हैं। यदि श्रमण भगवान् ग्रामानुग्राम विवरते हुए, यहाँ पधारें, तो मैं भगवान् की वन्दना एवं पर्युपासना करूं।" उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी चम्पा नगरी के पूर्णभद्र चैत्य में बिराजमान थे। उदयन नरेश के मनोगत भाव जान कर भगवान् वीतभय नगर पधारे । भगवान् का आगमन जान कर उदयन नरेश प्रसन्न हुए । वे हर्षोल्लास एवं आडम्बर पूर्वक भगवान् को वन्दन करने गये । महारानी प्रभावती आदि रानियें भी भगवान् के समवसरण में आई। वन्दना-नमस्कार के पश्चात् भगवान् की देशना सुनी। भगवान का धर्मोपदेश सुन कर उदयन नरेश के निवेद-संवेग में वृद्धि हुई। उन्होंने भगवान् को वन्दना कर के निवेदन-किया "प्रभो ! मैं अभीचिकुमार को राज्याधिकार दे कर श्रीचरणों में निग्रंथप्रव्रज्या अंगीकार करना चाहता हूँ ।" भगवान् ने कहा-"जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो। धर्मसाधना में रुकावट नहीं होनी चाहिये।" उदयन नरेश समवसरण से निकल कर राज्य-भवन की ओर चले। मार्ग में उन्होंने सोचा "अभी चिकुमार मेरा एक मात्र पुत्र है और अत्यन्त प्रिय है । वह निरन्तर सुखी रहे, उसे कभी किसी भी प्रकार का दुःख नहीं हो । इसलिये उसके हित में यही उचित होगा कि वह राज्य के दुःखदायक बन्धनों में नहीं बन्ध कर पृथक रहे । यदि वह राज्यवैभव और काम-भोग में लिप्त-आसक्त एवं गृद्ध हो जायगा, तो संसार-सागर के भयंकर दुःखों में डूब जायगा और दुःख परम्परा बढ़ती ही जायगी। इसका अन्त आना कठिन हो जायगा । इसलिये पुत्र पर राज्य-भार नहीं लाद कर भानेज केशीकुमार का राज्याभिषेक कर दूं।" अपने उपरोक्त विचार को निश्चित करते हुए वे राज्य-प्रासाद में पहुँचे और राज्यासन पर आरूढ़ हो कर भानेज केशीकुमार के राज्याभिषेक की घोषणा कर दी। नियमानुसार राज्याभिषेक हो गया। तत्पश्चात् उदयन महाराज का अभिनिष्क्रमण उत्सव + यह चरित्र वर्णन भगवती सूत्र शतक १३ उद्देशक ६ के अनुसार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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