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एकदिन मायाविनी ने अभयकुमार से कहा-
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' बन्धुवर ! आज आप हमारे घर भोजन करने पधारें ।" अभयकुमार ने उनका आग्रह माना और साथ ही चल दिया । उसे विविध प्रकार के मिष्ठान्न और व्यञ्जन परोसे | पीने के लिये सुगन्धित जल दिया । जल पीते ही अभयकुमार को नींद आने लगी । वे सो गये । जल में चन्द्रहास मदिरा मिलाई हुई थी। सुसुप्त अभयकुमार को रथ में लिटा कर विश्वस्त व्यक्तियों को मौंप दिया। योजना के अनुसार प्रत्येक स्थान पर रथ तैयार थे । यों रथ पलटते हुए उज्जयिनी पहुंचे और अभयकुमार को चण्डप्रद्योत के सम्मुख उपस्थित किया ।
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तीर्थंकर चरित्र भाग ३
महाराजा श्रेणिक ने अभयकुमार की बहुत खोज करवाई, परन्तु पता नहीं लगा । उन कपट श्राविकाओं के स्थान पर जा कर भी पूछा, तो वे बोली -- " वे तो भोजन कर के चले गये थे । कहाँ गये, यह हम नहीं जानती ।" तत्पश्चात् गणिका भी उज्जयिना चली गयी और राजा को अपनी सफलता की कहानी सुनाई। प्रद्योत ने गणिका से कहा-"तेने धर्म के दम्भ से अभय को पकड़ा, यह ठीक नहीं किया । इससे धर्मियों पर भी सन्देह होने लगेगा और धर्म को पाप का निमित्त बनाने का मार्ग खुल जायगा ।"
अभयकुमार से चण्डप्रद्योत ने व्यंगपूर्वक कहा- -" अरे अभय! तू तो अपने आपको बड़ा बुद्धिमान समझता था और अपने सामने किसी को मानता ही नहीं था । परन्तु मेरे यहाँ की एक स्त्री भी तुझे एक तोते के समान पिंजरे में बन्द कर के ले आई। बोल अब कहाँ गई तेरी बुद्धि ?
"
'आपकी ही राजनीति ऐसी देखी कि जहां अपनी शक्ति नहीं चले, वहाँ स्त्रियों का उपयोग करे और वह स्त्री भी वारांगना । उसका रूप जाल काम नहीं दे, वहाँ धर्मछल करने का अधमाधम मार्ग अपनावे | आपका राज्यविस्तार इसी प्रकार होता होगा ? अभयकुमार के उत्तर ने प्रद्योत को लज्जित कर दिया, परन्तु तत्काल क्रोध कर के अभयकुमार को बन्दीगृह में बन्द करवा दिया ।
अभयकुमार का बुद्धिवैभव
प्रद्योत राजा के यहाँ चार वस्तुएँ उत्तम और रत्न रूप मानी जाती थी; -- १ अग्नि भीरु रथ २ महारानी शिवादेवी ३ अनलगिरि हाथी और ४ लोहजंघ दूत । उस समय
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