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________________ -........................ वेश्या अमय कुमार को ले गई ............................................................ था। उसने सभा में घोषणा की--"जो कोई भी अभय कुमार को पकड़ कर मेरे सम्मुख लावेगा, उसे मैं उचिन पुरस्कार से संतुष्ट करूँगा ।" राना की घोषणा को किसी ने स्वीकार नहीं किया । एक गणिका ने राजा को घोषणा की बात सुनी, तो उसने सोचा--पुरुषों को मोहित कर के फाँस लेना हम स्त्रियों के लिये कोई कठिन नहीं है ! अभयकुमार कितना ही विचक्षण हो चालक हो, उसे मैं किसी भ' प्रकार पकड़ कर ले आऊंगो ।" उसने राजा के समी। जा कर अभिवादन किया और कार्यभार ग्रहण किया, आवश्यक साधन प्राप्त किया और दो सुन्दर युवती स्त्रियाँ राजा में प्राप्त की। उपते अभयकुमार का स्वभाव रुचि आदि की जानकारी प्राप्त की। उसे ज्ञात हुआ कि अभयकुमार धर्म-रसिक है । इसलिये धर्म के निमित्त से ही उसे पकड़ना मरल होगा। वह अपनी दानों सहयोगिनी के साथ जैन-साध्वियों के पास गई और थोड़े दिनों के अभ्यास से ही जैनधर्म के तत्त्व, साधना और चर्या सीख ली । तदनन्तर वे तीनों राजगृह आई और वहाँ एक आवास ले कर रही । फिर वे तीनों महासतियों के स्थान पर गई। सामायिक प्रतिक्रमणादि का डौल किया। प्रात.काल भी वे इसी प्रकार कर के स्तुतिस्नवनादि तल्लोनत। पूर्वक गाने लगी । प्रातःकाल अभयकुमार वन्दन करने आये और उन्हं ने उन्हें देखा, तो लगा कि ये बहिनें बाहर से आई हुई हैं। उन्होंने उनसे पूछा । गणिका बोलो ;-- “मैं उज्जयिनी के एक प्रतिष्ठित सेठ की विधवा हूँ। ये दोनों मेरी पुत्रवधू है । और विधवा है । हम संसार से विरक्त हैं । हमें दीक्षित होना है। हमने सोचा;-मगधदेश जा कर भगवान् और अन्य महात्माओं और महासती चन्दनाजी आदि को वन्दन कर आवे, फिर प्रजित होग, इसी विचार से आई हैं।" -- "बहिन ! आप आज मेरा आतिथ्य स्वीकार करने का अनुग्रह करें।" अभयकुमार ने आग्रहपूर्वक कहा । --"आज तो हमारे उपवास है।" --"अच्छा तो कल सही । पारणा मेरे ही यहाँ करें। --"भाई ! कल का बात कौन करे, एक क्षण का भी पता नहीं लगता।" --- 'मैं स्वयं कल प्रातःकाल यहीं आ कर आपको ले जाऊँगा"--कह कर और साध्वियों को वन्दना नमस्कार कर अभयकुमार स्वस्थान गये । दूसरे दिन प्रातःकाल अभय कुमार स्वयं गये और तीनों मायाविनियों को अपने घर लाये, फिर साधर्मी-सेवा की उच्च भावना से आदर युक्त भोजन कराया और वस्त्रादि अर्पित कर आदर सहित विदा किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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