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________________ कककककककक —— वीर- शासन का भविष्य में होने वाला अंतिम केवली ား၊ ककककककककककककककक -- "" -" प्रभो ! कुछ ही काल के अन्तर से आपने दो प्रकार के उत्तर कैसे दिये ?" 'श्रेणिक ! ध्यान के परिवर्तन एवं परिवर्तित ध्यान के समय के परिणाम की अपेक्षा दो प्रकार का परिणाम बताया गया है। प्रथम तो दुर्मुख के वचनों के निमित्त से मुनि रौद्रध्यानी बने । उनका रौद्रध्यान बढ़ता ही गया । वे अपने सामन्तों और मन्त्रियों के साथ मन-ही-मन युद्ध करने लगे। तुमने वन्दना की, उस समय वे युद्ध में संलग्न थे । जब तुमने प्रश्न किया, तब उनके परिणाम सातवीं नरक में जाने के योग्य थे । मन-ही-मन उन्हें अपने समस्त आयुध समाप्त हुए लगे, तो उन्होंने शत्रु का सिर तोड़ने के लिये अपना भारी सिरस्त्राण उतार कर प्रहार करना चाहा, इसके लिए मस्तक पर हाथ ले गये, तो fuse सर हाथ आया । इस स्पर्श रूपी निमित्त ने उनके वल्पित युद्ध को समाप्त कर दिया । कुछ समय चला हुआ मोहोदय शमन हुआ और पुन: चारित्रात्मा प्रबल हुई | उन्हें अपने चारित्र का भान हुआ । अपनी दुर्वृत्ति को धिक्कारते हुए वे सम्भले और पुनः ध्यानारूढ़ हुए । इस समय उनकी परिणति सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देव होने के योग्य है ।" यह बात हो ही रही थी कि उस ओर देवदुंदुभि का निनाद सुनाई दिया । श्रेणिक के पूछने पर भगवान् ने फरमाया--" प्रसन्नचन्द्र राजर्षि को केवलज्ञान- केवलदर्शन उत्पन्न हो गया है । देवगण उनका महोत्सव कर रहे हैं ।" वीर-शासन का भविष्य में होने वाला अंतिम केवली " भगवन् ! आपके तीर्थ में अंतिम केवलज्ञानी कौन होगा " - - श्रेणिक ने पूछा । श्रेणिक के प्रश्न पूछते ही ब्रह्मदेवलोक के इन्द्र का सामानिक देव * वहाँ आकर उपस्थित हुआ और भगवान को वन्दन- नमस्कार किया । भगवान् ने श्रेणिक के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा- Jain Education International "L 'यह पुरुष अंतिम केवली होगा ।" ३४१ ककककक ककक श्रेणिक को आश्चर्य हुआ । उसने पूछा -- " क्या देव भी केवलज्ञान प्राप्त कर सकते हैं ?" * त्रि.श. पु. च. में लिखा है कि वह देव अपनी चार देवियों के साथ उपस्थित हुआ । परन्तु यह सिद्धांत के विपरीत है । क्योंकि देवियां तो दूसरे देवलोक के आगे होती नहीं और ब्रह्मदेवलोक तो पाँचवाँ है ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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