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________________ तीर्थंकर चरित्र - भाग ३ एकककककककककककककककककककककककककककककककककककक‍ FP®PDF 1221FFF भ्रष्ट करने का षड्यन्त्र रच रहे हैं। इसकी रानियाँ भी बालक को छोड़ कर न जाने किस के साथ चली गई है। सारे राज्य को अस्तव्यस्त करने और राज्य पर विपत्ति खड़ी करने वाले 'इस' पाखण्डी का तो मुँह देखना भी पाप है ।" राजर्षि के निकट हो कर जाते हुए उसने उपरोक्त शब्द कहे थे । सेनाना के ये शब्द महर्षि ने भी सुने । छोटा सा निमित्त भी पतन कर सकता है। ३४० जिस प्रकार छोटीसी चिनगारी भयंकर आग बन कर धन-माल और भवनादि सम्पत्ति को जलाकर भस्म कर देती है, उसी प्रकार सेनानी के दुर्वचन रूपी विष ने, महर्षि को अमरत्व प्रदान करने वाले ध्यान रूपी अमृत को विषमय बनाने का काम किया । एक छोटे-से निमित्त ने सोये हुए मोह उपादान को जगा कर सक्रिय कर दिया । राजर्षि का ध्यान भंग हुआ और उलटी दिशा पकड़ी । वे सोचने लगे ; -- "अहो, आश्चर्य है कि मेरे अत्यन्त विश्वस्त मन्त्री भी कृतघ्न हो गये । धिक्कार है इन दुष्टों को । यदि मेरे समक्ष उन्होंने ऐसा किया होता, तो में उन्हें वह कठोर दण्ड देता कि उनका वंश तक नष्ट हो जाता ।' महर्षि अब चारित्रात्मा मिट कर, कषायात्मा हो गए थे । उन में रौद्र ध्यान का उदय हो गया । वे मन्त्रियों और सामन्तों से मन-ही-मन युद्ध करने लगे। सैनिकों की कतार आगे बढ़ गई। महाराजा श्रेणिक क्रमशः महर्षि के निकट आये और भक्तिपूर्वक वन्दना की । राजर्षि के उग्रतम एवं एकाग्र ध्यान की अनुमोदना करते हुए भगवान् के निकट आये और वन्दना करने के पश्चात् विनय पूर्वक पूछा; -- "L 'भगवन् ! आपके शिष्य राजर्षि प्रसन्नचंद्रजी अभी ध्यान मग्न हैं । यदि इस ध्यानावस्था में ही उनकी मृत्यु हो जाय, तो उनकी गति कौनसी हो सकती है ?" " सातवीं नरक" -- भगवान् ने कहा । श्रेणिक राजा भगवान् का उत्तर सुन कर चौंका-- "ऐसा कैसे हो सकता है ? क्या ऐसे उग्र तपस्वी महाध्यानी भी नरक में जा सकते हैं--ठेठ सातवीं नरक में ? कदाचित् मेरे सुनने-समझने में भूल हुई हो ।" उसने पुनः प्रश्न किया--"यदि इस समय प्रसन्नचंद्र महात्मा का अवसान हो जाय तो कहाँ उत्पन्न हो सकते हैं ? "1 " सर्वार्थसिद्ध महाविमान में " -- भगवान् का उत्तर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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