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तीर्थकर चरित्र-भाग ३
कर गोशालक के साथ भी रहे।
गोशालक अपने प्रयत्न में निष्फल रहा । वह हताश हुआ और निःश्वास छोड़ता, बाल नोचता, अपने अंगों को पीटता और पांव पटकता हुआ वहां से निकला और-- "हाय-हाय, मैं मारा गया"--बोलता हुआ हालाहला कुम्हारिन के स्थान में आया । अब वह अपना शोक, खेद एवं हताशा भुलाने के लिए मद्यपान करता, गाता, नाचता और अपनी परम उपासिका हालाहला के हाथ जोड़ता हुआ मिट्टी-मिश्रित पानी से शरीर का सिंचन कराने लगा। उसे उसो की तेजोलेश्या के लौट कर शरीर में प्रवेश करने से दाहज्वर हो गया था।
गोशालक अपने दोषों को छुपाने के लिए अष्ट चरम की प्ररूपणा करने लगा । यथा"१ चरम गान २ चरम पान ३ चरम नाट्य ४ चरम अंजलिकर्म ५ चरम पुष्फल संवर्तक महामेघ ६ चरम सेचनक गंध-हस्ति ७ चरम महाशिला-कंटक संग्राम और ८ चरम मैं (गोशालक) इस अवसर्पिणी का चरम तीर्थकर जो सिद्धबुद्ध और मुक्त होऊँगा।"
जन-चर्चा
गोशालक का भगवान् के पास पहुँचने, दो साधुओं को भस्म करने आदि घटना की चर्चा नागरिकजनों में इस प्रकार होने लगी--"कोष्टक चैत्य में दो जिन एक-दूसरे पर आक्षेप कर रहे हैं । एक कहता है--"तू पहले मरेगा," और दूसरा कहता है--"तू पहले मरेगा।" इन दोनों में कौन सच्चा है ?' बुद्धिमान पुरुषों का कहना है कि-- "भगवान् महावीर सत्यवादी हैं और गोशालक मिथ्यावादी है।"
गोशालक-भक्त अयंपुल
उसी श्रावस्ति नगरी में 'अयंपुल' नामक गोशालक का उपासक रहता था। वह भी धनाढ्य एवं समर्थ था और आजीवक मत का परम श्रद्धालु था। वह गोशालक को परम आराध्य मानता था। वह गोशालक को वन्दन-नमस्कार करने हालाहला के संस्थान में आया। उसने दूर से ही गोशालक को आम्रफल हाथ में लिये हुए यावत् हालाहला को बारम्बार अंजलि-कर्म करते हुए और मिट्टी मिश्रित जल का सिवन करते हुए देखा, तो
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