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________________ गोशालक ने शिष्य-सम्पदा भी गँवाई ३२९ कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक गोशालक ने भगवान् पर भी वही अस्त्र फेंका, परन्तु वह तेजोलेश्या भगवान् का वध नहीं कर सकी। जिस प्रकार पर्वत को वायु गिरा नहीं सकती, उसी प्रकार मारक शक्ति भी व्यर्थ रही । वह शक्ति इधर-उधर भटकने लगी, फिर भगवान् की प्रदक्षिणा कर के ऊँची उछली और अपना प्रयोग करने वाले--गोशालक के शरीर में प्रविष्ट हो कर उसे ही जलाने लगी। गोशालक अपनी ही तेजोलेश्या से जलता हुआ क्रोधपूर्वक बकने लगा--"काश्या ! मेरी तेजालेश्या से झुलसा हुआ तू पित्तज्वर से अत्यंत पीड़ित हो, हो, सात दिन में छ प्रस्थ अवस्था में ही मर जायगा।" ____ भगवान् ने कहा--"गोशालक मैं तो अभी और सोलह वर्ष तक जीवित रह कर केवलज्ञानी तीर्थकर की स्थिति में ही विचरूँगा। परन्तु तु तो सात दिन में ही अपनी तेजोलेश्या से उत्पन्न पित्तज्वर में जलता हुआ, छद्मस्थ अवस्था में ही मर जायगा।" गोशालक धर्मचर्चा में निरुत्तर हुआ भगवान् ने श्रमण-निग्रंथों को सम्बोधित कर कहा--"आर्यों ! जिस प्रकार घासफूस आदि में आग लग जाती है और सत्र जल कर राख का ढेर हो जाता है, उसी प्रकार गोगालक की शक्ति नष्ट भ्रष्ट हो चुकी है। यह उस मारक-शक्ति से रहित हो गया है। अब तुम इसके साथ धर्म चर्चा कर के निरुत्तर करो।" श्रमणनिग्रंथों ने गोशालक से प्रश्न पूछे, परन्तु उसका तत्त्वज्ञान से कोई विशेष सम्बन्ध रहा ही नहीं था। उसने शिष्यत्व स्वीकार किया था--मात्र भगवान् की महानता देख कर । संसार मे विरक्त हो कर मुक्ति पाने के लिए उसने साधुता स्वीकार नहीं की थी और न उसने आगमिक ज्ञान ही प्राप्त किया था। वह शीघ्र ही निरुत्तर हो गया। गोशालक ने शिष्य-सम्पदा भी गँवाई धर्म-चर्चा में निरुत्तर होने पर गोशालक फिर कुपित हुआ, परंतु अब वह शक्तिहीन हो गया था। अतएव श्रमण -निग्रंथों का कुछ भी अनिष्ट नहीं कर सका। गोशालक की सामर्थ्य हीनता देख कर उसके वहत-से शिष्य उसका साथ छोड़ कर भगवान के आश्रय में आये, वन्दना नमस्कार किया और भगवान का शिप्यत्व स्वीकार कर के रहने लगे तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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