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________________ महासती चन्दनाजी और मृगावतीजी को केवलज्ञान ३२३ चक्कक ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककर कक्क्य ७ हरिवंश कुलोत्पत्ति--'हरि' नाम के युगलिक की वंश-परम्परा चलना (यह प्रसंग पहले आ चुका है)। ८ चमरोत्पात--चमरेन्द्र का सौधर्म स्वर्ग में जा कर उपद्रव करना । (यह वर्णन भी आ चुका है)। ९ अष्टशतसिद्ध--एक समय में उत्कृष्ट अवगाहना वाले १०८ मनुष्यों का सिद्ध होना। यह घटना भगवान् ऋषभदेवजी से सम्बन्धित है । वे स्वयं, ९८ पुत्र और ९ पौत्र एक साथ सिद्ध हुए थे। १० असंयत पूजा--नौवें तीर्थंकर भगवान् सुविधिनाथजी के मुक्ति प्राप्त करने के बाद और दसवें तीर्थंकर भगवान् शीतलनाथ जी के पूर्व श्रमण-परम्परा का विच्छेद हो गया था और असंयतीजनों की पूजा-सत्कार और द्रव्य भेंट होने लगे। गृहदान, गोदान, अश्वदान, स्वर्णदान, भू-दान यावत् कन्यादान आदि का प्रचार कर स्वार्थ साधने लगे। इनकी पुष्टि के लिये नये नये शास्त्र रच लिये । इस प्रकार असंयती पूजा चली । उपरोक्त बातें अनहोनी नहीं हैं, किन्तु जिस रूप में घटित हुई, वे अस्वाभाविक है । इसलिये आश्चर्यकारी है । जैसे-- उपसर्ग होना असंभ वित नहीं, मनुष्यों पर उपसर्ग होते ही रहते हैं । परन्तु सर्वज्ञसर्वदर्शी तीर्थंकर भगवान् पर उपसर्ग होना आश्चर्यजनक है । इसी प्रकार भावी तीर्थंकर के गर्भ का संहरण, आदि सभी अन्य रूप में तो अघटित नहीं, किन्तु उस रूप में अनन्त काल में कभी होने के कारण आश्चर्यकारी होती है । महासती चन्दनाजी और मृगावतीजी को केवलज्ञान छत्तीस सहस्र साध्वियों की नायिका आर्या चन्दनबाला महासतीजी ने सती मृगावतीजी को उपालम्भ देते हुए कहा-- "मृगावती ! तुम उच्च जाति कुल सम्पन्न हो और उत्तम आचार-धर्म का पालन करने वाली मर्यादावंत साध्वी हो । तुम्हें रात के समय अकेली बाहर रहना नहीं चाहिये।" गुरुणीजी का उपालभ सुन कर आर्या मगावत जी ने अपने को अपराधिनी माना और बार-बार क्षमा याचना करने लगी । सतीजी को अपनी असावधानी पर खेद होने लगा । यद्यपि वे भगवान को वाणी और उसके चिन्तन में लीन होने के कारण तथा दिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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