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________________ चन्द्र-सूर्यावतरण ++ आश्चर्य दस ५. बियनककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक होकर किमो को भी अनिष्ट एवं कठोर वचन नहीं कहना चाहिये था। तुमने रेवती पर क्राधित हो कर कठोर वचन कहे। इसकी आलोचना कर के प्रायश्चित्त कर लो।" गौतम स्वामी द्वारा भगवान् का सन्देश सुन कर महाशतक ने आलोचना कर के प्रायश्चित्त लिया। महाशतक ने बीस वर्ष श्रमणोपासक पर्याय का पालन कर एक मास के अनशन युक्त काल कर के प्रथम स्वर्ग में चार पल्योपम की स्थिति वाला देव हुआ। देवायु पूर्ण कर के महाविदेह में मनुष्य-जन्म पाएगा और चारित्र का पालन कर मुक्ति प्राप्त कर लेगा। नन्दिनीपिता श्रमणोपासक श्रावस्ति नगरी का 'नन्दिनी पिता' गाथापति बारह कोटि स्वर्ण और चार गोवर्ग का स्वामी था । 'अश्विनी' उसकी भार्या थी । भगवान् महावीर स्वामी का धर्मोपदेश सुन कर यह भी श्रमणोपासक बना और आनन्द के समान यह भी उपासक-प्रतिमा का पालन कर बीस वर्ष की श्रावक-पर्याय और एक मास का संथारा कर के प्रथम स्वर्ग में चार पल्योपम की स्थिति वाला देव हुआ । यह भी महाविदेह में चारित्र का पालन कर मुक्ति प्राप्त करेगा। इन्हें उपसर्ग नहीं हुआ। शालिहियापिता श्रमणोपासक श्रावस्ति नगरी के 'शालि हिया-पिता' गाथापति का चरित्र भी कामदेव श्रावक के समान है। बारह कोटि स्वणं और चार गोवर्ग का स्वामी था। 'फाल्गनी' उसकी भार्या थी। यह भी भगवान् महावीर का उपासक हुआ। परन्तु इसे किसी प्रकार का उपसग नहीं हुआ । यह भी बीस वर्ष श्रावकपन और प्रतिमा का आगधन कर के एक मास के संथारे युक्त काल कर सौधर्म स्वर्ग में चार पल्योपम की स्थिति वाला देव हुआ और महा विदेह में धर्म की आराधना करके मुक्त हो जायगा। चन्द्र सूर्यावतरण ++ आश्चर्य दस ___ त्रिलोक पूज्य भगवान् महावीर प्रभु कौशाम्बी नगरी पधारे। वहाँ दिन के अंतिम प्रहर में ज्योतिषेन्द्र चन्द्र-सूर्य अपने स्वाभाविक रूप में भगवान् को वन्दन करने .... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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