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रेवती की भोगलालसा और क्रूरता
मारने को तार हुआ, तब वह स्थिर नहीं रह सका और उस अनार्य पुरुष को पकड़ने के लिए उसे ललकारता हुआ उठा । देव अदृश्य हो गया । उसकी ललकार सुन कर अग्निमित्रा जाग्रत हुई । उसने सद्दालपुत्र का भ्रम मिटाया और आलोचनादि से शुद्धि करवाई। शेष वर्णन पूर्ववत् है यावत् मुक्ति प्राप्त करेगा ।
महाशतक श्रमणोपासक
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राजगृह में 'महाशतक' नाम का गाथापति रहता था। वह चौबीस कोटि स्वर्णमुद्राओं के धन का स्वामी था। अस्सी सहस्र गायों के आठ गोवर्ग का उसका गोधन था । उसके रेवती आदि तेरह पत्नियाँ थीं, जो सर्वांग सुन्दर थी । इनमें से रेवती अपने पितृगृह से आठ करोड़ का स्वर्ण और आठ गावर्ग लाई थी और शेष बारह पत्नियें एक-एक करोड़ का धन और एक-एक गोवर्ग लाई थी । महाशतक उन सब के साथ भोग भोगता हुआ विचरता था । भगवान् महावीर प्रभु के उपदेश से महाशतक भी व्रतधारी श्रावक बन गया । उसने चतुर्थव्रत में अपनी तेरह पत्नियों के अतिरिक्त मैथुन सेवन का त्याग किया ।
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रेवती की भोगलालसा और क्रूरता
रेवती ने सोचा- 'मेरी बारह सौतें हैं । मैं पति के साथ इच्छानुसार भोग नहीं भोग सकती । इसलिए मैं किसी भी प्रकार इन्हें मार दूं, तो इन सब का धन भी मेरा हो जायगा और पति के साथ में अकेली ही भोग भोगती रहूँगी ।' उसने अपनी छह सोतों को तो शस्त्र प्रहार से मार डाला और छह को विष प्रयोग से । और उन सब की सम्पत्ति तथा गोवर्ग अपने अधिकार में ले लिये। फिर महाशतक के साथ अकेली भोग भोगने लगी । रेवती मांसभक्षणी और मदिरा पान करने वाली थी। माँस-मदिरा और विषय सेवन ही उसके जीवन का उद्देश्य और कार्य था । वह इन्हीं में गृद्ध रहती थी ।
राजगृह के महाराजाधिराज श्रेणिक ने अमारि (पशु-पक्षी हिंसा का निषेध ) घोषणा करवाई। मांस-लोलुपा रेवती के लिए यह घोषणा असह्य हो गई । मांस भक्षण किये बिना उसे संतोष नहीं होता था । वह अपने मायके के सेवकों द्वारा अपने मायके से प्राप्त गोवर्ग में से दो बछड़े प्रतिदिन मरवा कर मँगवाने लगी और उनका मांस खा कर तृप्त होने लगी ।
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